सौ. सुजाता काळे

((सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “वैश्विक धर्म समभाव”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 19 ☆

☆ वैश्विक धर्म समभाव
जुदा जुदा हैं रंग यहाँ
जुदा जुदा हैं भेस
कोई हिन्दू, मुस्लिम है
कोई सिख, ईसाई वेश।सब रंग की छटाओं से
बनता है हिन्दुस्तान
एकता ही विशालता में
रहता एक है भगवान।

एक रास्ते से चलते हैं
जैसे जुड़ता इंद्रधनुष
आँधी या तूफान हो
हमारा अखंड कल्पवृक्ष।

हरा, नीला या केसरिया हो
रंगे मानवता के रंग से
आओ मिलकर बनाते हैं
वैश्विक धर्म समभाव से।

© सुजाता काळे,

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684

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