श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है उनकी रचना लागी लगन अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 11 – विशाखा की नज़र से

☆ लागी लगन ☆

 

प्रीत की धुन छिड़ी,
छिड़ी बस छिड़ती रही
अब तू नाच …..

 

देख स्वप्न , दिवास्वप्न भी
मूंद आँखे या अधखुली
अब तू जाग …….

 

बोलेगा हर अंग तेरा ,
हर राग तेरा , गीत तेरा
अब तू गा …….

 

प्रेमपथ पर देह चली ,
गीत गाते मीरा चली ,
कृष्ण की परिक्रमा उसका नाच है ,
अधखुली दृष्टि उसकी जाग है ,
समर्पण , प्रेम का दूजा नाम है ।
तो ,
अब तो तू जाग ………

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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