डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की स्त्री जीवन पर आधारित एक भावप्रवण कविता वजूद औरत का…। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 252 ☆

वजूद औरत का… 

काश! इंसान समझ पाता

वजूद औरत का

वह अबला नारी नहीं

नारायणी है,दुर्गा है,काली है

समय आने पर कर सकती

वह शत्रुओं का मर्दन

छुड़ा सकती है उनके छक्के

और धारण कर सकती है

मुण्डों की माला

 

वह सबला है

असीम शक्तियां संचित हैं उसमें

कठिन परिस्थितियों में

पर्वतों से टकरा सकती

आत्मसम्मान पर आंच आने पर

वह अहंनिष्ठ पुरुष को

उसकी औक़ात दिखला सकती

 

बहुत कठिन होता है

विषम परिस्थितियों से

समझौता करना

दिल पर पत्थर रखकर जीना

सुख-दु:ख में सम रहना

सकारात्मक सोच रख

निराशा के गहन अंधकार को भेद

आत्मविश्वास का दामन थामे

निरंतर संघर्षशील रहना

यही सार ज़िंदगी का

 

यदि मानव इस राह को

जीवन में अपनाता

तो लग जाते खुशियों के अंबार

चलती अलमस्त मलय बयार

और ज़िंदगी उत्सव बन जाती

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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