श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता तू चलता चल, अपने बल पर” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #248 ☆

☆ तू चलता चल, अपने बल पर… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

तू चलता चल, अपने बल पर

संकल्प नहीं सौगंध नहीं, अब जो जैसा है ढलने दें

उस कालचक्र की मर्जी पर, वो जैसा चाहें चलने दें

जो हैं शुभचिंतक बने रहें, उनसे ही तो ऊर्जा मिलती

हैं जो ईर्ष्या भावी साथी ,वे जलते हैं तो जलने दें।

हो कर निश्छल, मन निर्मल कर।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

*

अब भले बुरे की चाह नही, अपमान मान से हो विरक्त

हो नहीं शत्रुता बैर किसी से, नहीं किसी के रहें भक्त

एकात्म भाव समतामूलक, चिंता भय से हों बहुत दूर,

हो देह शिथिल,पर अंतर्मन की सोच सात्विक हो सशक्त।

मत ले सम्बल, आश्रित कल पर।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

*

जीवन अनमोल मिला इसको अन्तर्मन से स्वीकार करें

सत्कर्म अधूरे रहे उन्हें, फिर-फिर प्रयास साकार करें

बोझिल हो मन या हो थकान, तब उम्मीदों की छाँव तले

बैठें विश्राम करें कुछ पल, विचलित मन का संताप हरें

मत आँखें मल, पथ है उज्ज्वल।

तू चलता चल, अपने बल पर।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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