आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत – जितना दिखता है आँखों को…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 197 ☆

☆ गीत – जितना दिखता है आँखों को… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

*

ऐसा सोच न नयन मूँदना

खुली आँख सपने देखो

खुद को देखो, कौन कहाँ क्या

करता वह सब कम लेखो

कदम न रोको

लिखो, ठिठककर

सोचो, क्या मन में टिकता?

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

*

नहीं चिकित्सक ने बोला है

घिसना कलम जरूरी है

और न यह कानून बना है

लिखना कब मजबूरी है?

निज मन भाया

तभी कर रहीं

सोचो क्या मन को रुचता?

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

*

मन खुश है तो जग खुश मानो

अपना सत्य आप पहचानो

व्यर्थ न अपना मन भटकाओ

अनहद नाद झूमकर गाओ

झूठ सदा

बिकता बजार में

सत्य कभी देखा बिकता?

जितना दिखता है आँखों को

उससे अधिक नहीं दिखता

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०१९ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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