श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “जीने दो मुझको”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 185 ☆

☆ # “जीने दो मुझको” # ☆

मत डराओ

यह विष पीने दो मुझको

मैं अभी जिंदा हूं

कुछ देर और

जीने दो मुझको

 

मेरी हर राह

कीलों से सजा रखी है

मेरी हर चाह

विषधर ने दबा रखी है

तोड़ने यह नागपाश

यह जहर पीने दो मुझको

मैं अभी जिंदा हूं

कुछ देर और

जीने दो मुझको

 

इस दुनिया ने

पग पग पर मुझको छला है

अपनी तरकश से

ज़ख्मी करने

मुझपर हर तीर चला है

मैं सदियों से जख्मी हूं

इन जख्मों को सीने दो मुझको

मैं अभी जिंदा हूं

कुछ देर और

जीने दो मुझको

 

अब कोई वार करे

यह मुझे मंजूर नहीं

हर दफा मैं ही मरूँ  

ऐसा कोई दस्तूर नहीं

यह जंग पुरानी है

इस बार तो जीतने दो मुझको

मैं अभी जिंदा हूं

कुछ देर और

जीने दो मुझको/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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