आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 187 ☆

☆ नवगीत – बाँस रोपने – बढ़ा कदम ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

 

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

.

अब तक किसने-कितने काटे

ढो ले गये,

नहीं कुछ बाँटें.

चोर-चोर मौसेरे भाई

करें दिखावा

मुस्का डांटें.

बँसवारी में फैला स्यापा

कौन नहीं

जिसका मन काँपा?

कब आएगी

किसकी बारी?

आहुति बने,

लगे अग्यारी.

उषा-सूर्य की

आँखें लाल.

रो-रो

क्षितिज-दिशा बेहाल.

समय न बदले

बेढब चाल.

ठोंक रहा है

स्वारथ ताल.

ताल-तलैये

सूखे हाय

भूखी-प्यासी

मरती गाय.

आँख न होती

फिर भी नम

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

.

करे महकमा नित नीलामी

बँसवट

लावारिस-बेनामी.

अंधा पीसे कुत्ते खायें

मोहन भोग

नहीं गह पायें.

वनवासी के रहे नहीं वन

श्रम कर भी

किसान क्यों निर्धन?

किसकी कब

जमीन छिन जाए?

विधना भी यह

बता न पाए.

बाँस फूलता

बिना अकाल.

लूटें अफसर-सेठ कमाल.

राज प्रजा का

लुटते लोग.

कोंपल-कली

मानती सोग.

मौन न रह

अब तो सच बोल

उठा नगाड़ा

पीटो ढोल.

जब तक दम

मत हो बेदम

बाँस रोपने

बढ़ा कदम

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९.४.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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