श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “रामलखन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 53 ☆ रामलखन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

भरी जवानी में बूढ़ा

दिखता है रामलखन।

 

पौ फटते ही

मज़दूरी के लिए निकल जाता

साँझ ढले पर

लुटा-पिटा सा घर को आ पाता

 

आते घरवाली कहती

अब बचा नहीं राशन।

 

बिना फ्राक के

मुनिया कैसे जायेगी स्कूल

छप्पर टूटा

कहता मुझको न जाना तुम भूल

 

अब की बारिश के पहले

कर लेना कोई जतन।

 

पिछड़ों में भी

नाम लिखाया था पटवारी को

बहन लाड़ली

में भी जोड़ा था घरवारी को

 

नहीं कहीं है सुनवाई

विपदा भोगे निर्धन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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