श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 127 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆

समांत – आह

पदांत – नहीं है

मात्रा भार – सोलह

 

मन में अब उत्साह नहीं है।

दिखती मुझको राह नहीं है।।

 *

अपनों ने जो जख्म दिए हैं।

उसकी कोई थाह नहीं है।।

 *

मैंने खूब सजाया आँगन।

पर उनको परवाह नहीं है।।

*

एक-एक कर बिछुड़े अपने।

इक जुटता की चाह नहीं है।।

 *

पूरा जीवन खपा दिया जब।

मन में चिंता, दाह नहीं है।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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