श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना लही न कतहु हार हिय मानी। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 192 ☆ लही न कतहु हार हिय मानी

हार जीत के साथ आगे बढ़ते हुए नए- नए मुद्दों का बनते जाना कोई नयी बात नहीं है। समय तेजी से बदल रहा है जो अपने अनुसार रणनीति बनाने में माहिर हो वही विजेता बनता है। एक – एक कदम चलते हुए जब व्यक्ति मंजिल पर पहुँचता है तो उसकी जीत सुनिश्चित होती है।वहाँ कोई प्रतिस्पर्धा नहीं रहती है। बस एकछत्र राज्य रहता है। इसका कारण साफ है कि निरन्तर कार्य करने की कला सबके बस की बात नहीं होती। आखिरी समय में जिसको होश आता है वो हड़बड़ाहट में उल्टे- सीधे पैतरे चलने लगता है जिससे उसके सारे कदम उसे गर्त में धकेलने लगते हैं।

जीवन के हर क्षेत्र में ऐसा ही होता है। शैक्षिक डिग्री पाने हेतु कुछ लोग 20 प्रश्नोत्तरी सीरीज पर भरोसा करके पास तो होते हैं किंतु उनकी विषय पर पकड़ मजबूत नहीं होती। सच कहूँ तो एक दो महीने बाद वे ये भी भूल जाते हैं कि कौन – कौन से पेपर इस सेमेस्टर में थे। आलसी लोगों को बड़बोले होते हुये देखना कोई नयी बात नहीं है। बिना सिर पैर की बातों को तर्क संगत बनाकर अपना उपहास करवाना साथ ही अपने समर्थकों को सिर नीचा करने को विवश करना किसी भी सूरत में अच्छा नहीं है। कहते हैं-

आछे दिन पाछे गए, गुरु सो किया न हेत।

अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।।

रोज गुरु बदलना, सलाहकार बदलना, स्थान बदलना, विचार बदलना, भेष भूषा बदलना, शब्दावली बदलना। जब इतना कुछ बदलता रहेगा तो लोग कैसे विश्वास करेंगे। माना कि स्थायी कुछ भी नहीं है किंतु जीते जी मक्खी कौन निगलना चाहेगा सो जनता जनार्दन है,भाग्यविधाता है, उसे सही गलत में भेद करना बखूबी आता है। तालियों की गड़गड़ाहट, विजयी चिन्ह सभी को दिखायी दे रहें हैं बस औपचारिक घोषणा बाकी है। आइए राष्ट्रवादी विचारों के पोषक बन भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में अपना भी अंशदान करें।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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