(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख भगत सिंह की राह के ही राही उधमसिंग। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 274 ☆

? आलेख – भगत सिंह की राह के ही राही उधमसिंग ?

उधमसिंग और भगत सिंह में अद्भुत साम्य था. जो कार्य देश में भगत सिंह कर रहे थे उधमसिंग देश से बाहर वही काम कर रहे थे.

13 मार्च 1940 की उस शाम लंदन का कैक्सटन हॉल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. मौका था ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक का. हॉल में बैठे कई भारतीयों में एक ऐसा भी था जिसके ओवरकोट में एक मोटी किताब थी. यह किताब एक खास मकसद के साथ यहां लाई गई थी. इसके भीतर के पन्नों को चतुराई से काटकर इसमें एक रिवॉल्वर रख दिया गया था.

बैठक खत्म हुई. सब लोग अपनी-अपनी जगह से उठकर जाने लगे. इसी दौरान इस भारतीय ने वह किताब खोली और रिवॉल्वर निकालकर बैठक के वक्ताओं में से एक माइकल ओ’ ड्वायर पर फायर कर दिया. ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई. हाल में भगदड़ मच गई. लेकिन इस भारतीय ने भागने की कोशिश नहीं की. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. ब्रिटेन में ही उस पर मुकदमा चला और 31 जुलाई 1940 को उसे फांसी हो गई. इस क्रांतिकारी का नाम उधम सिंह था.  

भरी सभा चलाई गई  इस गोली के पीछे अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के बाजू में जलियांवाला बाग के बंद मैदान में किया गया गोलीकांड था. यह गोलीकांड 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ था. इस दिन अंग्रेज जनरल रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर के हुक्म पर इस बाग में इकट्ठा हुए हजारों लोगों पर गोलियों की बारिश कर दी गई थी.  ड्वॉयर के पास तब पंजाब के गवर्नर का पद था और उसने जनरल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया था. मिलते-जुलते नाम के कारण बहुत से लोग मानते हैं कि उधम सिंह ने जनरल डायर को मारा. लेकिन ऐसा नहीं था. इस गोलीकांड को अंजाम देने वाले जनरल डायर की 1927 में ही लकवे और कई दूसरी बीमारियों की वजह से मौत हो चुकी थी.

जलियांवाला बाग  एक बंद मैदान है  जहाँ से बाहर जाने का एक ही संकरा मार्ग  है, उस पर जनरल डायर की पोलिस जमी हुई थी. घिरे हुये लोगो का वह दिल दहला देने वाला हत्याकाण्ड उधमसिंह ने बेबस एक कोने में दुबके हुये स्वयं देखा था.   तभी उन्होंने ठान लिया था कि इस नरसंहार का बदला लेना है. उधमसिंह भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे. दोनों दोस्त भी थे.  भगत सिंह से उनकी पहली मुलाकात लाहौर जेल में हुई थी. दोनों क्रांतिकारियों की कहानी में बहुत दिलचस्प समानताएं  हैं.  दोनों पंजाब से थे. दोनों ही नास्तिक थे. दोनों हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे. दोनों की जिंदगी की दिशा तय करने में जलियांवाला बाग कांड की बड़ी भूमिका रही. दोनों को लगभग एक जैसे मामले में सजा हुई. जहाँ स्काट की जगह भगत सिंह ने साण्डर्स पर सरे राह गोली चलाई वहीं मुझे जनरल डायर की जगह  ड्वायर को निशाना बनाना पड़ा, क्योकि डायर की पहले ही मौत हो चुकी थी. भगत सिंह की तरह उधमसिंह ने भी फांसी से पहले कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ने से इनकार कर दिया था. उधमसिंह भी सर्व धर्म समभाव में यकीन करते थे. इसीलिए उधमसिंह  अपना नाम  मोहम्मद आज़ाद सिंह लिखा करते थे . उन्होंने यह नाम अपनी कलाई पर भी गुदवा लिया था.

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© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

इन दिनों, क्रिसेंट, रिक्समेनवर्थ, लंदन

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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