श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख पेपर लीक.? नकल ठीक..?आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 208 ☆

☆ आलेख – पेपर लीक.? नकल ठीक..? ☆ श्री संतोष नेमा ☆

भारत में पेपर लीक होना और नकल करना आम होता जा रहा है आये दिन चाहे शालेय परीक्षाएं हों या प्रतियोगी परीक्षाएं हर तरफ से, नकल, एवं पेपर लीक की खबरें सुनाई एवं दिखाई दे रही हैँ.! ऐसा लगता है मानो प्रशासन को इन विद्यार्थियों एवं परीक्षार्थियों की कितनी चिंता है तभी तो नकल करने की सारी सुविधाएं उपलब्ध नजर आती है.! कैसे जिम्मेदार अधिकारी परीक्षा के पूर्व पेपर लीक कर देते हैं.? अब इससे बड़ा समर्थन/ सहयोग क्या हो सकता है.? वैसे भी तमाम मेधावी छात्र आरक्षण के दंस से पीड़ित हैँ.!

नकल कराने के दृश्य देख कर तो आप भी दांतो तले अंगुली दबा लेंगे.? ना जाने नकल करने वालों से कहीं ज्यादा नकल कराने वालों को इतना पराक्रम और युक्ति कहां से आ जाती है.? जो दो-तीन मंजिला मंजिला भवनों की, दीवारों पर आसानी से खड़े होकर खिड़की के माध्यम से लाभार्थी को नकल पहुंचा देते हैं.! हम तो उनके इस पराक्रम को प्रणाम करते हैं.! नीचे सुरक्षा अधिकारी पुलिस और दीवारों पर नकल कराने वाले.! मजाल है कोई अपनी जगह से हिले.! वाह री व्यबस्था.! अब इन मीडिया वालों को कौन समझाए.? इनके पेट में बहुत जल्दी दर्द होने लगता है.! अब जब दर्द हो ही गया है तो कुछ तो इलाज करना ही पड़ेगा ना .! मीडिया जब भी ऐसे प्रकरण सामने लाता है तब तब प्रशासन ऐसा मेहसूस, कराता है कि मानो ऐसे प्रकरण पहली बार उनकी जानकारी में आए हों.! ऐसा नहीं है कि इन प्रकरणों की जानकारी नेताओं को नहीं होती.! वह तो जागते हुए भी सो जाते हैं.! और जब उन्हें जगाने का काम किया जाता है तब तक तमाम प्रतियोगी छात्रों का भविष्य खतरे की भेंट चढ़ जाता है.! हर राज्यों में भरतियों के पेपर लीक होना आम सा हो गया है.! जिससे युवाओं के सपने चकनाचूर हो जाते हैं, परीक्षाएं निरस्त हो जाती है, उम्मीदें टूट जाती हैँ, पर जिम्मेदारों को इससे क्या लेना देना  वह तो बस अपने सपने पूरे करने में लगे रहते हैं.? लगे भी क्यों ना रहें सबको अपने सपने पूरा करने का अधिकार जो है..!

अभी जबलपुर विश्वविद्यालय का हाल ही देख लो जो नियत तिथि को परीक्षा कराना ही भूल गया.? अब परीक्षार्थी दूर दराज से परीक्षा देने पहुँचे तो वहां के हाल देखकर भोचक्के रह गए.?

एक सवाल जहन में यह भी उठता है कि आखिर छात्र या प्रतिभागी नकल पर ही आश्रित क्यों हो रहे हैं.? क्या यह किताबी बोझ है  .? या कहीं ना कहीं हमारी परीक्षा प्रणाली का दोष है..!, जो कुछ भी हो सरकार से कुछ भी छिपा तो नहीं है  .?, क्या हमारी शिक्षा  सिर्फ नौकरी तक ही सीमित रह गई है.! हर छात्र का अंतिम उद्देश्य आज तो यही नजर आता है कि एन केन प्रकारेण उसे नौकरी हासिल हो जाए.! वह इसे ही अपनी कामयाबी मानकर चलता है.! जबकि मूलतः शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी तक ही सीमित नहीं है.! इस एकांगी शिक्षा पर आखिर कौन विचार करेगा.?

आज आलम यह है कि तमाम राज्य सरकारों द्वारा प्रायोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक होना या खुलेआम नकल करने की प्रवृत्ति में वृद्धि होना जैसे आम सा हो गया है जिसकी परिणति पेपर का निरस्तीकरण है.! जिसका खामियाना प्रतियोगी छात्रों को भुगतना पड़ता है जिनमे उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड, तेलंगाना, राजस्थान जैसे राज्यों में अक्सर ऐसे प्रकरण सुनाई देते हैं.! जब ऐसे प्रकरण सामने आते हैं तब सरकारों द्वारा यह कहना कि हम कठोर नियम बनाएंगे.! मतलब जब आग लगेगी तब हम कुआं खोदेंगे.? नियम तो नकल विरोधी या पेपर लीक होने के, पूर्व से ही हैँ, सिर्फ जरूरत है उन पर शक्ति से अमल करने की और उसके लिए जरूरत है इच्छा शक्ति की जो सरकारों में कम ही नजर आती है.! एक बड़े नेता ने कहा कि, पेपर लीक एवं नकल जैसे प्रकरण छात्रों के लिए अभिशाप है हम भरती प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएंगे एवं व्यवस्था में सुधार करेंगे.! स्वागत योग्य एवं अच्छी बात है.! पर पिछले अनेक वर्षों से देश में उनकी ही सरकारें थीं जिन राज्यों में ऐसे प्रकरण सामने आए उनमें भी उनकी ही सरकारें रहीं पर जो कुछ भी घटित हुआ वह हमारे सामने है.!  यहां सवाल यह नहीं की किसकी सरकारें थीं सवाल यह है कि जो भी सरकारें रहीं या हैँ  वह इस दिशा में  क्या ठोस कर पा रही है.?

नकल पर लगाम न लगा सकने के कारण अब परीक्षा प्रणाली में सुधार कर, किताब के साथ परीक्षा देने की (विथ दी ऐड ऑफ बुक) तैयारी में सरकारें लगी हुई है.! मतलब साफ है कि नकल रोकना भी अब मुश्किल होता जा रहा है.!

छात्रों को पाठ्यक्रम के साथ समुचित नैतिक शिक्षा देना भी आज के दौर में अत्यंत आवश्यक हो गया है.! ताकि नकल जैसी प्रवृत्तियों पर रोक लग सके.! गौरतलब है कि परीक्षा पेपर प्रिंटिंग  एवं परिवहन का काम निजी एजेंसियों के हाथ में होने से भी पेपर लीक जैसी घटनायें सामने आती हैँ.! देर से ही सही केंद्र सरकार पेपर लीक पर लगाम लगाने के लिए एक नया विधेयक अनुचित साधनों की रोकथाम) 2024 है. को लाने की तैयारी में है.!  अन्धेरा है बड़ा घनेरा.! जब जागो तभी सबेरा.!! वरना हालातों को देख कर तो यही लगता है ” पेपर लीक.! नकल ठीक..!!

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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