डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक लघुकथा – भोला मन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 225 – साहित्य निकुंज ☆

☆ लघुकथा – भोला मन ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

केबिन के दरवाजे में ठक तक की आवाज आई।

तुरंत ही हमने कहा ..” कम इन ” ।

देखते ही होश उड़ गए ।सामने से खूबसूरत लड़की हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए चली आ रही थी।

आते ही बोली ” सर लीजिए इसी ऑफिस में आज ही मेरी पोस्टिंग हुई है सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर।”

हमने …” बधाई है जी कहा “।

और वह “थैंक्स कह कर चली गई।”

दिन रात रूबी के साथ काम के सिलसिले में उठना बैठना जारी रहा मेरा मन तो बस उसका दीवाना होता जा रहा था उसकी बातों में उसके शब्दों में उसके पहनने ओढ़ने में कशिश थी जिसमें मैं रमता चला जा रहा था। कई बार सोचा कि उससे बात करूं उससे कहूं, लेकिन हिम्मत ही नहीं हुई एक दिन पता चला कि वह नौकरी छोड़ कर जा रही है।

उसको शहर से बाहर कहीं और अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है तब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसके जाने से पहले उसको कह ही दिया……..” रूबी जबसे तुमको देखा है तब से मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं मैं तुम्हें प्यार करता हूं तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी गुजारना चाहता हूं।”

तब रूबी का जवाब था… “आप सभी पुरुष वर्ग का मन बड़ा भोला होता है हंसी मजाक मित्रता को आप प्यार समझ लेते हैं और उसी पर अपना जीवन बर्बाद करने के लिए उतारू हो जाते हैं मैंने इस संदर्भ में कभी नहीं सोचा और न ही मैं सोचना चाहती हूं।”

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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