श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 40 ☆

☆ कविता ☆ “हमें बेवफा न समझना…☆ श्री आशिष मुळे ☆

हमें बेवफा न समझना

हम तलाश जो कर रहे है

तुम अब तुम नहीं रही

हम तुम्हें ही ढूंढ़ रहे है

 *

कितनी जिंदा थी तुम

ये सोच कर मर जाते है हम

अब सामने दिखती नहीं

ये देखकर खो जाते है हम

 *

कभी इसमे कभी उसमे

तुम झलक दिखलाती हो

ए मेरे इश्क़ की दास्तां

यूं टुकड़ों में क्यों मिलती हो

 *

जिस्म तो आज भी तुम्हारा

मगर रूह अब तुम्हारी नहीं

हमने प्यार रूह से किया था

तुम्हारे जिस्म से नहीं

 *

था एक जमाना तुम्हारी रोशनी का

जब सूरज डूबता नहीं था

आज भी खोई किरणों से रोशन

चांद भी कभी बेवफा नहीं था

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments