श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “रिश्तों में खट्टास का…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 123 – रिश्तों में खट्टास का… ☆

रिश्तों में खट्टास का, बढ़ता जाता रोग ।

समय अगर बदला नहीं, तो रोएँगे लोग ।।

 *

लोभ मोह में लिप्त हैं, आज सभी इंसान ।

ऊपर बैठा देखता, समदर्शी भगवान ।।

 *

अगला पिछला सब यहीं, करना है भुगतान ।

पुनर्जन्म तक शेष ना, कभी रहेगा जान ।।

 *

जीवन का यह सत्य है, ग्रंथों का है सार ।

जो बोया तुमने सदा, वही काटना यार ।।

 *

संस्कृति कहती है सदा, यह मोती की माल ।

गुथी हुयी उस डोर सेटूटे ना हर हाल ।।

 *

रिश्तों में बंधकर रहें, हँसी खुशी के साथ ।

बरगद सी छाया मिले, सिर पर होवे हाथ ।।

 *

रिश्ते नाते हैं सदा, खुशियों के भंडार ।

सदियों से हैं रच रहे, उत्सव के संसार  ।।7

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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