श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री बी एल आच्छा जी द्वारा रचित व्यंग्य संग्रह – “मेघदूत का टी ए बिलपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 155 ☆

☆ “मेघदूत का टी ए बिल… ” (व्यंग्य संग्रह)– श्री बी एल आच्छा ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा

कृति  – मेघदूत का टी ए बिल (व्यंग्य संग्रह)

व्यंग्यकार – श्री बी एल आच्छा

चर्चा  – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

☆ पुस्तक चर्चा – मेघदूत का टी ए बिल… विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

हरिशंकर परसाई जी का एक व्यंग्य है हनुमान जी का टी ए बिल।  इस व्यंग्य में उन्होंने आडिट कार्यालयों की कार्य पद्धति पर गहरा कटाक्ष किया है।  जब अयोध्या में राम के राज्याभिषेक के बाद हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाने की उनकी यात्रा का टी ए बिल प्रस्तुत किया तो आडीटर ने आब्जेक्शन लगा दिये कि हनुमान जी क्लास टू अफसर हैं और उन्हें हवाई यात्रा की पात्रता ही नहीं थी, फिर उन्होंने तत्कालीन राजा भरत से भी यात्रा की अनुमति नही ली और समूचा पर्वत लाकर अतिरिक्त वजन के साथ यात्रा की अतः यात्रा देयक वापस किया जाता है। किन्तु जब हनुमान जी ने आडीटर से दक्षिणा भेंट कर ली तो उसी आडीटर ने आब्जेक्शन का निदान करते हुये नोट लिखा  कि चूंकि तब भी श्री राम जी की चरण पादुकाओ के माध्यम से वे राज्य कर रहे थे अतः राजा भरत की अनुमति की आवश्यकता नहीं थी, लक्ष्मण जी के जीवन के संकट को देखते हुये उन्हें एक्स पोस्ट फैक्टो हवाई यात्रा तथा अतिरिक्त वजन के साथ यात्रा की अनुशंसा की जाती है और  टी ए बिल पारित कर दिया गया। ऑडिट कार्यालयों का यह यथार्थ व्यंग्य के साथ हास्य का अवसर निकाल लेता है।

किसी पुराने लोकव्यापी कथानक का अवलंब लेकर कटाक्ष करना और पाठको तक लक्षित संदेश संप्रेषित कर देना व्यंग्यकार की अपनी विशेषता होती है। बी एल आच्छा जी वरिष्ठ, परिपक्व, शैली तथा भाषा संपन्न सक्षम व्यंग्यकार हैं। उनकी अनेक किताबें पूर्व प्रकाशित हैं, जिनमें व्यंग्य की किताबें आस्था के बैंगन, पिताजी का डैडी संस्करण आदि प्रमुख हैं। उन्हें अनेक ख्याति लब्ध सम्मान मिल चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओ में रचनाकार के रूप में उनका नाम देखकर उन्हें पढ़े बिना पन्ना पलटना मेरे जैसे पाठकों के लिये आनंददायी अवसर होता है। मेघदूत का टी ए बिल शीर्षक से संस्कृति प्रकाशन से उनका नया व्यंग्य संग्रह आया है। पहला ही व्यंग्य किताब का शीर्षक व्यंग्य है “मेघदूत का टी ए बिल ” इसी तरह की रचना है, उससे उधृत है …

“मंद-मंद मुस्कुराते हुए ऑडिटर ने लिखा- कालिदास को हवाई रूट से भेजा गया था, तो वे सीधे नागपुर होते हुए अलकापुरी न जाकर विदिशा में क्यों अटके? विदिशा से वे वक्री होकर उज्जैन क्यों चले गए? इस तरह यात्रा मार्ग एवं दिन क्यों बढ़ाये गए?   आडीटर की आपत्ति यह भी थी कि कालिदास को विरह की चिट्ठी लेकर जाना था, सो भी ‘यक्ष सरकार के सेवार्थ’ लिफाफा सील लगाकर। माना कि यक्ष ने मौखिक संदेश दिया होगा, पर कवि ने उसमें अपना मसाला मिला दिया है। उसने लिखा है- श्यामल लताओं में तुम्हारा शरीर, चकितहरिणी की आंखों में तुम्हारी चितवन, चन्द्रमण्डल में तुम्हारा मुख, मयूर-पंखों में तुम्हारी केशराशि, नदी की तरंगों में तुम्हारी भौंहों का विलास देख लेता हूं, पर सारे सुंदर उपमान एकसाथ नहीं मिलते जैसी तुम्हारी सुंदर देह में एकत्र मिल जाते हैं।’ तो क्यों न ऐसा माना जाए कि कवि ने यक्ष के बहाने अपना काम उसी तरह निकाला है, जैसे कई बार निजी कार्य के लिए सरकारी काम निकालकर यात्रा कर ली जाती है। अत: यह बिल मूलत: वापस किया जाता है। व्यंग्यकार ने लिखा है कि जब आपत्तियों के निदान के लिये आडीटर से व्यक्तिगत भेंट की गई तो वास्तविकता समझ आई दरअसल आडीटर कालिदास के साहित्य के प्रशंसक थे और आब्जेक्शन के बहाने वे उनसे सीधी भेंट करना चाहते थे। ” लोकव्यवहार में इस तरह की तिकड़में असामान्य नहीं, मेरी जानकारी में एक शिक्षक ने स्थानांतरण पर आये प्रशासनिक अधिकारी की बेटी जो अब मेरी पत्नी हैं, के एडमीशन के लिये पहुंचे मातहत की नहीं सुनी और शालापंजी में हस्ताक्षर के बहाने उन्हें व्यक्तिगत रुप से आने पर विवश कर दिया, उनका तर्क था कि हमें तो हमेशा ही प्रशासनिक कार्यालयों के चक्कर लगाने होते हैं, आज ऊंट पहाड़ के नीचे आ ही जाये। इसी तरह लंदन के भारतीय दूतावास ने एक नामी पत्रकार मेरे दामाद को वीजा जारी करने से पहले व्यक्तिगत बुलावा भेज दिया क्योंकि वे उनसे कनेक्ट बनाना चाहते थे। अस्तु इस अधिकारों के इस तरह उपयोग की विसंगति को रोचक कथानक में पिरोकर आच्छा जी ने उम्दा व्यंग्य पाठको को दिया है। व्हाट्सअप और विरह, वेल इन टाइम से वेलेन्टाइन तक, ये देवता रोते क्यों नहीं, रचना प्रकाशन के सोलह श्रंगार, बात बात में इमोजी व्यापार, आम लेखक के कंधों पर लटका वेताल, करोड़पति हो गया मेरा मोबाईल नम्बर, गुरूजी का सर होते जाना, शब्दों की खेती पर एम एस पी खरीद, ऐसी बानी बोलिये जमकर झगड़ा होय, मुझ पर पीएचडी हो गई आदि आदि रचनायें उल्लेखनीय हैं जिन्हें पढ़ना सुखद है।

मात्र एक सौ अस्सी रुपयों में चेन्नई से छपी १५४ पृष्ठीय संग्रह मेघदूत का टी ए बिल का हर व्यंग्य पठनीय तो है ही किसी न किसी व्यवहारिक आस पास बिखरी विसंगति को उजागर कर छोटे छोटे व्यंग्य में अंत तक पाठक को बांधे रखने में सक्षम हैं। किताब बड़े फांट्स में रीडर्स फ्रेंडली तरीके से अच्छे कागज पर त्रुटि रहित प्रकाशित हुई है। आच्छा जी लोकाचार में अकथित व्यक्तव्य सुनने की समझ रखते हैं और उसे पाठको के लिये आकर्षक कथानक में प्रस्तुत करते हैं। समीक्षा के हर्बल ब्यूटी पार्लर भी एक रचना है जिसमें उन्होंने लिखा है .. ” हर अखबार, हर पत्रिका में अनेक समीक्षायें ही किताब को पहचान देती हैं। ” यहां यह उल्लेख करना चाहता हूं कि यह कृति किसी समीक्षा की मोहताज नहीं है, न्यूनतम मूल्य में स्तरीय पठनीय व्यंग्य सामग्री इस पुस्तक की खासियत है, पुस्तक में ४१ व्यंग्य हैं। ठेठ दक्षिण चेन्नई से प्रकाशित हिन्दी व्यंग्य की यह किताब पढ़ने की अनुशंसा करते हुये आच्छा सर से लगातार और व्यंग्य संग्रहो, व्यंग्य उपन्यास की अपेक्षा हम व्यंग्य प्रेमी करते हैं।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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