(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – घर की सरकार का बजट)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 259 ☆

? व्यंग्य – घर की सरकार का बजट ?

बतंगड़ जी मेरे पड़ोसी हैं। उनके घर में वे हैं, उनकी एकमेव सुंदर सुशील पत्नी है, बच्चे हैं। मैं उनके घर के रहन सहन परिवार जनो के परस्पर प्यार, व्यवहार का प्रशंसक हूं। जितनी चादर उतने पैर पसारने की नीति के कारण इस मंहगाई के जमाने में भी बतंगड़ जी के घर में बचत का ही बजट रहता है। परिवार में सदा सादा जीवन उच्च विचार वाली आदर्श आचार संहिता का सा वातावरण होता है। देश, प्रदेश में हर साल प्रस्तुत होते बजट, बजट के पूर्व एवं पश्चात टी वी डिबेट डिस्कशन का असर बतंगड़ जी के घर पर भी हुआ। बतंगड़ जी की पत्नी, और बच्चो के अवचेतन मस्तिष्क में लोकतांत्रिक भावनाये संपूर्ण परिपक्वता के साथ घर कर गई। उन्हे लगने लगा कि घर में जो बतंगड़ जी का राष्ट्रपति शासन चल रहा है जो नितांत अलोकतांत्रिक है। बच्चो को लगा उनके खर्चों में कटौती होती है। पत्नी को अपनी किटी पार्टी में बजट बढ़ोतरी की आवश्यकता याद आई।

बतंगड़ जी को अमेरिका से कंम्पेयर किया जाने लगा, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक सिद्धांतो की सबसे ज्यादा बात तो करता है पर करता वही है जो उसे करना होता है। बच्चो के सिनेमा जाने की मांग को उनकी ही पढ़ाई के भले के लिये रोकने की विटो पावर को चैलेंज किया जाने लगा, पत्नी की मायके जाने की मंहगी डिमांड बलवती हो गई। मुझे लगने लगा कि एंटी इनकंम्बेंसी फैक्टर बतंगड़ जी को कही का नही छोड़ेगा। अस्तु, एक दिन चाय पर घर की सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप को लेकर खुली बहस हई। महिला आरक्षण का मुद्दा गरमाया। संयोग वश मै भी तब बतंगड़ जी के घर पर ही था, मैने अपना तर्क रखते हुये भारतीय संस्कृति की दुहाई दी और बच्चो को बताया कि हमारे संस्कारो में विवाह के बाद पत्नी स्वतः ही घर की स्वामिनी होती है, बतंगड़ जी जो कुछ करते, कहते है उसमे उनकी मम्मी की भी सहमति होती है। पर मेरी बातें संसद में विपक्ष के व्यक्तव्य की तरह अनसुनी कर दी गई।

तय हुआ कि घर के सुचारु संचालन के लिये बजट बनाया जाए जिसे सभी सदस्यों की सहमति से पारित किया जाए। बजट प्रस्तुती हेतु बतंगड़ जी मुझसे सलाह कर रहे थे, तो आय से ज्यादा व्यय अनुमान देख मैने उन्हें बताया कि जब खर्च के लिये देश चिंता नही करता तो फिर आप क्यों कर रहे हैं ? देश विश्व बैंक से लोन लेता है, डेफिशिट का बजट बनाता है, आप भी लोन लेने के लिये बैंक से फार्म ले आयें। बतंगड़ जी के घर के बजट में बच्चो के मामा और बुआ जी के परिवार अपना प्रभाव स्थापित करने के पूरे प्रयास करते दिख रहे है, जैसे हमारे देश के बजट में विदेशी सरकारे प्रगट या अप्रगट हस्तक्षेप करती है। स्वतंत्र व निष्पक्ष आब्जरवर की हैसियत से बतंगड़ जी के दूसरे पड़ोसियो को भी बजट के डिस्कशन के दौरान उपस्थिति का बुलावा भेजा गया है।

 बजट पर बहस के नाम पर ही बतंगड़ जी के घर में रंगीनियो का सुमधुर वातावरण है, और हम सब उसका लुत्फ ले रहे हैं।

यूं भी बजट आश्वासनों का पुलिंदा ही तो होता है। घर की सरकार चलानी है तो बजट बनेगा। तय है कि विपक्ष अच्छे से अच्छे बजट को भी पटल पर रखे जाते ही बिना पढ़े ही उसे आम आदमी के लिये बोझ बढ़ाने वाला निरूपित करेगा। वोटर भी जानता है कि चुनावो वाले साल में बजट ऐसा होगा जिससे भले ही देश को लाभ न हो पर बजट बनाने वाली पार्टी को वोट जरूर मिलें।

शब्दो, परिभाषाओ में उलझा वोटर प्रतिक्रिया में कुछ न कुछ अच्छा बुरा कहेगा, ध्वनिमत से बजट पास भी हो जायेगा। पता नही कितना आबंटन उसी मद में खर्च होगा जिस के लिये निर्धारित किया जायेगा। पता नही कब कैसी विपदा आयेगी और सारा बजट धरा रह जायेगा, खर्च की कुछ नई ही प्राथमिकतायें बन जायेंगी, पर हर हाल में बजट की चर्चा और उम्मीद के सपने संजोये बजट हमेशा प्रतिक्षित रहेगा। बजट में योजना का प्रावधान ही जनता को आनंदित करने में सक्षम है। बजट प्रस्तुत होने के बाद भी जब जीवन में कोई क्रांतिकारी बदलाव नही ला पायेगा तो हम सब पागल अगले साल के बजट से उम्मींदें करने की गलतफहमियां पाल लेंगे। फिलहाल बतंगड़ जी के घर की सरकार के बजट की आहट से उन के दिल में शेयर बाजार के केंचुए की चाल की तरह धड़कने ऊपर नीचे होती दिख रही हैं, और उनकी पत्नी, बच्चो सहित कुछ आबंटन की आशा में प्रसन्न दिखती हैं।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments