श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना प्रेम डोर सी सहज सुहाई। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 181 ☆ प्रेम डोर सी सहज सुहाई ☆

वक्त के साथ समझदारी आती है, जिससे अहसास के मूल्य पुनर्जीवित हो जाते हैं। सुप्रभात, शुभरात्रि व शुभकामना संदेश ये सब इसी कड़ी को जोड़ने में मील का पत्थर साबित हुए हैं। सुविचारों के भेजने से सामने वाले की बौद्धिक क्षमता व उसके व्यक्तित्व का आँकलन भी होता है। लोग एक दूसरे से इतनी अपेक्षा रखते हैं कि बिना कुछ किये दूसरा सब कुछ करता रहे अर्थात केवल लेने की चाहत, ये कहाँ तक उचित हो सकता है? इसी सम्बन्ध में एक छोटी सी कहानी है- एक वृक्ष की पहचान व सुंदरता उसके फूल और फल से होती है इसी घमंड में फूल इतरा उठा उसने वृक्ष को खूब खरी- खोटी सुनायी।

आखिर वह भी कब तक चुप रहता उसने कह दिया तुम्हारा स्थायित्व तो एक दिन, एक हफ्ते, एक पक्ष या अधिक से अधिक एक महीने ही रहता है जबकि मैं तो तब बना रहूँगा जब तक जड़ न सूख जाए। वृक्ष की इस बात का समर्थन उसकी शाखाओं ने भी किया।

इस बात से नाराज हो फूल मुरझा कर गिर गया, उसके समर्थन में पत्तियाँ भी झर गयीं। फल सूखा जिससे बीज इधर – उधर बिखर गए, देखते ही देखते सुनामी की लहर उठी और पूरा वृक्ष अकेले शाखाओं के साथ जड़ के दम पर अडिग रहा।

मौसम बदला जिससे कुछ ही दिनों में कोपलें आयीं और देखते ही देखते पूरा वृक्ष हरा- भरा हो गया। फिर से वही क्रम शुरू हो गया, फूल खिलना, मुरझाना, पतझड़ से पत्ते झरना व कुछ समय बाद कोपलों से वृक्ष का भर जाना।

इस पूरे घटना क्रम से एक ही बात समझ में आती है कि जब तक व्यक्ति जड़ से जुड़ा रहेगा तब तक उसके जीवन में आने वाला पतझड़ भी उसे मिटा नहीं पायेगा बल्कि वो और सुंदर होकर निखर जायेगा।

अतः केवल फायदा लेने की प्रवृत्ति से बचें क्या दायित्व हैं, उनका कितना निर्वाह आपने किया इस पर भी विचार करें तभी लोकप्रियता मिलेगी याद रखें अधिकार माँगने से नहीं मिलते उसे आपको कमाना पड़ता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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