श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना शोभा सिंधु न अंत रही री…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 180 ☆ शोभा सिंधु न अंत रही री… ☆

वर्तमान कब भूत में बदल जाता है, पता  नहीं चलता पर अभी भी बहुत से लोग पुराना राग अलाप रहे हैं, आज के तकनीकी युग में जब हर पल स्टेटस व डी पी बदली जा रही है तब व्यवहार कैसे न बदले पर कुछ भी हो नेकी व सच्चाई नहीं छोड़नी चाहिए  हम सबको अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक रहना चाहिए।

तेजी से बदलती दुनिया में कुछ भी तय नहीं रह सकता ….

कल के ही अखबार आज नहीं चलते ये बात  सुविचार की दृष्टि से, प्रतियोगी परीक्षार्थी  की दृष्टि से तो सही है परन्तु व्यवहार यदि पल- पल बदले तो उचित नहीं कहा जा सकता है।

खैर जिसको जो राह सही लगती है, वो उसी पर चल पड़ता है। कुछ ठोकर खा कर संभल जाते हैं; कुछ दोषारोपण करके अलग राह पर चल पड़ते हैं। वक्त रेत के ढेर की तरह फिसलता जा रहा है,  कर्मयोगी तो इसे अपने वश में कर लेते हैं परन्तु जो कुछ नहीं करते वे दूसरों के ऊपर आरोप- प्रत्यारोप करने में समय व्यतीत करते रह जाते हैं। इस दुनिया में सबसे मूल्यवान समय है, उसका सदुपयोग आपको रंक से राजा व दुरुपयोग राजा से रंक बनाने की क्षमता रखता है।

आप जिस भी क्षेत्र में कार्य करते हों  वहाँ पर ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वाहन करें यदि वो भी न बनें तो कम से कम आलोचक न बनें क्योंकि निंदक नियरे राखिए आज भी प्रासंगिक है पर वो  सार्थक तभी होगा जब निंदक ज्ञानी हो, उसमें निःस्वार्थ का भाव हो, सच्ची निंदा ही पथप्रदर्शन का कार्य कर सकती है  और निंदक मार्गदर्शक का।

जब आप किसी के लिए उपयोगी हों तो विरोधी होने पर  भी  लोग आपका  सम्मान करेंगे, मीठे वचनों की शक्ति से तो सभी परिचित हैं। कहावत भी है बातन हाथी पाइए बातन हाथी पाँव  अर्थात आप अपनी अच्छी वाणी के बल पर उपहार में हाथी, धन संपदा, वैभव सब प्राप्त कर सकते हैं जबकि कड़वे वचनों से सजा स्वरूप हाथी के पाँव के नीचे भी  पहुँच सकते हैं।

लोगों का लगाव हमेशा ही अच्छे गुणों से होता है ये ही आपकी सच्ची पूँजी है जो आपके बाद भी लोगों के साथ बनी रहती है। नेकी कभी व्यर्थ नहीं जाती इसका फल मिलता ही है कई गुना वापस होकर तो क्यों न इस पूँजी का संचयन करे अपने व अपनों के लिए।

एक तरफ जहाँ किसी के भी कार्यों का मूल्यांकन बहुत सहज होता वहीं स्वमूल्यांकन अत्यन्त कठिन क्योंकि दूसरों से कार्य करवाने में तो हम सभी माहिर होते हैं, जबकि खुद से कार्य नहीं करवा पाते जो भी लक्ष्य निर्धारित करते हैं उसमें आने वाली बाधाओं से  डर कर  रास्ता बदल देते हैं।

जो कुछ करना चाहता है, उसकी राहें स्वयं बनने लगतीं हैं। हर व्यक्ति अपने अनुसार चलना और चलाना चाहता है पर मजे की बात सामंजस्य नहीं चाहता। ये सब तो चलता रहेगा। अब समय है मर्यादा पुरुषोत्तम के पदचिन्हों पर चलने का। रामलला के विग्रह को देखकर ये पंक्ति जीवंत हो उठती है…

लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा

निज आयुध भुज चारी…

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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