(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य – शरद जोशी और लघु व्यंग्य)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 248 ☆

? व्यंग्य – शरद जोशी और लघु व्यंग्य ?

लघु व्यंग्य से आशय यही होता है कि उसका विस्तार अधिक न हो, किंतु न्यूनतम शब्दों में व्यापक कथ्य संप्रेषित किया गया हो। क्षणिकाओ में यही लघु व्यंग्य कविता के स्वरूप में तो लघुकथाओ के ट्विस्ट में गद्यात्मक रूप में पत्र पत्रिकाओ में बाक्स मैटर के रूप में खूब पढ़ने मिलता है। व्यंग्य लेखों में अनेक पैराग्राफ स्वयं में स्वतंत्र लघु व्यंग्य होते हैं। कुछ व्यंग्यकार स्तंभ की मांग के अनुसार घटना विशेष पर टिप्पणियों में लघु व्यंग्य रचना में स्वयं को समेट लेते हैं। इसे व्यंग्य आलोचना में वन लाइनर, पंच, हाफ लाइनर आदि के टाइटिल दिये जाते हैं। छोटे व्यंग्य लेख जिनमें प्रस्तावना, विस्तार तथा कथ्य के शिक्षाप्रद कटाक्ष के साथ लेख का अंत होता है, भी लघु व्यंग्य की श्रेणि में रखे जा सकते है।

शरद जोशी के समकाल में लघु व्यंग्य जैसी कोई श्रेणि अलग से नहीं की गई थी, यद्यपि सरोजनी प्रीतम उन दिनों कादम्बनी में अपनी क्षणिकाओ में लघु व्यंग्य के प्रहार नियमित रूप से करती दिख रही थीं।

आज शरद जोशी के साहितय का पुनरावलोकन लघु व्यंग्य के माप दण्ड पर करें तो हम पाते हैं कि उनके स्तंभ प्रतिदिन में तात्कालीन सामयिक घटनाओ पर अनेक लघु व्यंग्य उन्होने किये थे। उनकी  पुस्तक यथा संभव में १०० व्यंग्य लेख सम्मिलित हैं, जिनमें से अनेक अंश स्वतंत्र लघु व्यंग्य कहे जा सकते हैं।

शरद जी के चर्चित व्यंग्य लेखों में से एक रेल दुर्घटनाओ पर है जिसमें वे लिखते हैं “भारतीय रेल हमें मृत्यु का दर्शन समझाती है और अक्सर पटरी से उतरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती है. कोई नहीं कह सकता कि रेल में चढ़ने के बाद वह कहां उतरेगा स्टेशन पर, अस्पताल में या श्मशान में ” अपने आप में यह लघुता में किया गया बड़ा कटाक्ष है।

इसी तरह उनके समय से आज तक भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, उन्होने लिखा “हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे”,  अतिथि तुम कब जाओगे, जीप पर सवार इल्लियां आदि शीर्षक स्वयं में ही लघु व्यंग्य हैं। आपातकाल के दौरान पंचतंत्र की कथाओ के अवलंबन उनकी लिखी लघुकथायें गहरे कटाक्ष करती हैं “शेर की गुफा में न्याय” ऐसी ही एक लघुव्यंग्य कथा है।

नेताओं पर व्यंग्य करते हुए शरद लिखते हैं, ‘उनका नमस्कार एक कांटा है, जो वे बार-बार वोटरों के तालाब में डालते हैं और मछलियां फंसाते हैं. भ्रष्टाचार की व्यापकता पर वे लिखते हैं ‘सारे संसार की स्याही और सारी जमीन का कागज भी भ्रष्टाचार का भारतीय महाकाव्य लिखने को अपर्याप्त है। वे लेखन में प्रसिद्धि का शाश्वत सूत्र बता गये हैं “जो लिखेगा सो दिखेगा, जो दिखेगा सो बिकेगा-यही जीवन का मूल मंत्र है “। हम पाते हैं कि वर्तमान लेखन में यह दिखने की होड़ व्यापक होती जा रही है। किताबों की उम्र बहुत कम रह गई है, क्योकि किताबें छप तो बहुत रही हैं पर उनमें जो कंटेंट है वह स्तरीय नहीं रह गया है।  लघु कटाक्ष में बड़े प्रहार बात कर सकने की क्षमता  ही लघु व्यंग्य है, जो शरद जी की लेखनी में यत्र तत्र सर्वत्र दिखता है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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