श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 64 ☆ देश-परदेश – नया सवेरा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

जीवन के छै दशक से भी अधिक का काल बीत गया,कान सुन सुन कर पक गए,अब नया सवेरा आयेगा।

जीवन में खुशियां और सुख की बाढ़ आयेगी।

आज फिर एक और अंग्रेज़ी नव वर्ष आरंभ हो रहा हैं।हम प्रतिदिन की भांति तैयार होकर प्रातः भ्रमण के लिए निकल पड़े। मौसम समाचार और व्हाट्स ऐप के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं के मद्दे नज़र बंदर टोपी के ऊपर मफलर लपेट लिया,ऊनी मोजे , हाथ में चमड़े के दस्ताने,ओवर कोट के ऊपर लाल इमली,कानपुर वाली पुरष शाल लपेट कर अपनी दिनचर्या का पहला कदम मंजिल की तरफ बढ़ा दिया।

घर के बाहर कोहरे की घनी चादर , खड़े हुए वाहनों पर  ओस की परत देखकर मन में अंतरद्वंद चल रहा था,की लोट चले रजाई में वापिस,कल देखेंगे।

व्हाट्स ऐप के ज्ञान ने हमे हिम्मत और सबल दिया,घर की दहलीज पार कर ली।प्रतिदिन की भांति कुछ लोग कान में यंत्र डाल कर भ्रमण करते हुए दृष्टिगोचर हुए।कुछ नए बरसाती मेंढक भी दिखे, हर नव वर्ष पर दो चार दिन ऐसा ही होता हैं।

एक स्थान पर प्लास्टिक के ग्लास ठंडी हवा मे तांडव करते हुए अवश्य दिखें।एक समाज सुधारक ठेकेदार ने विगत रात्रि मुफ्त गर्म दुग्ध वितरण करवाया था।उनको आगामी लोक सभा में पार्टी के टिकट जो प्राप्त करना हैं।

अगले नुक्कड़ पर कुछ अधिक अंधेरा था,लेकिन दस बारह वर्ष के कुछ बच्चे अंधेरे में कुछ खोज रहे थे।वहां कांच की टूटी बोतलें पड़ी थी।बच्चे साबूत बोतलों को डूंड कर   अपनी पेट की क्षुधा को शांत करने की मुहिम में जीजान से लगें हुए थे।

नए सवेरे की इंतजार में रात्रि के अंधेरे में अवश्य मद्यपान वालों की महफिल सजी होगी।नया सवेरा तो कहीं दिख नहीं रहा था।प्रतिदिन की भांति दो दूध वाले सरकारी नल के पास पानी का इंतजार कर रहे थे।उनके मोबाइल से अवश्य आवाज़ आ रही थी,दूध में कितना पानी मिलाएं ?

भ्रमण से वापसी में घर के पास सफाई कर्मचारी सड़क पर फैले हुए जले हुए पटाखे के कचरे को एकत्र करते हुए,परेशान से दिख रहे थे।

कुछ युवा जो क्षेत्र में कार सफाई का कार्य करते है,आपस में बातचीत करते हुए कह रहे थे,आज पहली तारीख है,गाड़ी अच्छे से साफ करनी पड़ेगी।

ये सब तो प्रतिदिन होता है,वो व्हाट्स ऐप पर हजारों संदेश जो कह रहे थे, कि आज नया सवेरा होगा,आशा की किरण होगी,सब तरफ खुशहाली होगी,खुशियों का समुद्र होगा,कहां हैं,कब होगा ? नया सवेरा।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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