(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य – मीटिंग के लाभ )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 247 ☆

? व्यंग्य – मीटिंग के लाभ ?

मीटिंग से, कुछ भी गोपनीय नहीं रहता। कौन बली का बकरा बना। किसको फटकार पड़ी। किसकी प्रोग्रेस अच्छी है। किससे बड़े साहब खुश हैं, वगैरह वगैरह, सारी बाते, स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान के रूप में सरेआम होती हैं।

इन दिनों हर छोटे बड़े शहर में एक अदद सिटी चैनल भी टी.वी. मीडिया का अंग बन गया है। इन युवा पत्रकारों को भी टी.वी. कैमरा थामें किसी भी मीटिंग में गाहे बगाहें कवरेज करते देखा जा सकता है। इस प्रक्रिया से मीटिंग में हिस्सेदारी करते लोग, श्रेष्ठता का अनुभव करते हैं। वे अपने बीबी बच्चों को बता और जता सकते हैं, कि आखिर कितनी मशक्कत से वे नौकरी कर रहे हैं। प्रायः मीटिंग अटेंड करते रहने के और भी अनेकों लाभ हैं। आपकी जान पहचान अपने बाजू में बैठे अधिकारी से हो जाती है । आप उसके साथ मिलकर सुर में सुर मिला कर बड़े साहब की बुराई कर सकते हैं और इस तरह आपके संपर्क तथा लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता रहता है। जब कभी आपको व्यक्तिगत व्यस्तता से कार्यालय से गायब रहना हो, आप आफिस में, या घर पर मीटिंग में जाने का सीधा बहाना बना सकते हैं । कोई आप पर जरा भी शक नहीं करता। जब मिनिट्स आफ मीटिंग सरक्यूलेट हों, और उसमें आपकी सहभागिता प्रदर्षित करता कोई कमेंट आपके नाम के साथ आ जावे तो उसे रेखांकित कर अपने मातहतों को बताना न भूलें, इससे आपके सबर्डिनेट्स का हौसला बढ़ता है, और वे नई ऊर्जा के साथ अगली मीटिंग के लिये लम्बी चौड़ी तालिका में, आंकड़ों की फसल बोने लगते हैं।

इन दिनों लैपटाप का जमाना है। जो युवा अधिकारी मीटिंग में अपने साथ पी पी टी प्रेजेन्टेशन ले जावें, वे बड़ी आसानी से सबके लिए आकर्षण और उत्सुकता का केन्द्र बनते हैं। रंग बिरंगे बार चाटर्स के जरिये, डिजीटल फोटो और नक्शो के माध्यम से आप प्रगति के आंकड़े सजा सकते हैं, और बास की शाबासी पा सकते हैं । काम हो या न हो, साफ-सफाई और प्रस्तुति के अंक पूरे के पूरे, पाने का नायाब नुस्खा मीटिंग ही है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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