श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना हिम के कणों से पूर्ण मानो…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 175 ☆

हिम के कणों से पूर्ण मानो… ☆

सामान्य रूप से हम अपने जीवन का कोई न कोई उद्देश्य निर्धारित करते हैं। इसे लक्ष्य से जोड़कर सफलता प्राप्ति हेतु सतत प्रयत्नशील रहते हैं। ऐसे में किसी गुरु का वरदहस्त सिर पर हो तो मंजिल सुलभ हो जाती है। फिर लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में भटकन नहीं होती। एक सफल मार्गदर्शक लक्ष्य प्राप्ति हेतु समय-समय पर ढाल बनकर मदद करता है और शीघ्र ही व्यक्ति विजेता के रूप में उभरता है।

त्रेता युग में भगवान श्री कृष्ण पांडवो के मार्गदर्शक थे जिसके कारण उन्हें विजय मिली जबकि कौरवों के पास बड़े- बड़े योद्धा होने के बाद भी हार का सामना करना पड़ा क्योंकि वहाँ उनका मार्गदर्शन शकुनि की बदनियती कर रही थी।

एक और प्रसंग – अर्जुन को गुरु द्रोण का मार्गदर्शन व आशीर्वाद मिला तो वो एक विजेता के रूप में मान्य हुआ जबकि एकलव्य और कर्ण ज्यादा योग्य धनुर्धर होने के बाद भी बिना गुरुकृपा के वो स्थान नहीं पा सके।

हर व्यक्ति यही चाहता कि सबंधो को निभाने की जिम्मेदारी दूसरे की ही हो , कोई भी स्वयं पहल नहीं करता। इसका सबसे बड़ा कारण है कि जो हमारे लिए उपयोगी होता है उसके शब्द हमें मिश्री की भाँति लगते हैं जबकि जिससे कोई काम की उम्मीद न हो उसे मख्खी की तरह निकाल फेकने में एक पल भी नहीं लगाता।

खैर ये तो सदियों से चला आ रहा है इसके लिए बजाय किसी को दोष देने कहीं अधिक बेहतर है कि आप उपयोगी बनें तभी आपकी सार्थकता है आखिर घर में भी पड़ा हुआ अनुपयोगी समान स्टोर रूम की भेंट चढ़ जाता है और कुछ दिनों बाद कबाड़ के रूप में बेच दिया जाता है।

ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं जहाँ लक्ष्य प्राप्ति में मार्गदर्शक ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments