श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “दिवस आजकल के…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 34 ☆ दिवस आजकल के… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

हेमंती शिशिर हुए

दिवस आजकल के

चुपके से विखर गए

साँझ के धुँधलके।

 

हृदयों के आलंबन

प्रीति बनी समिधा

आँख लिखें आमंत्रण

अधरों की दुविधा

 

केतकी गुलाब जुही

गंध कलश छलके।

 

आलिंगन हुआ मुखर

बाँह के हिंडोले

साँस के दुराहे पर

मौन प्रणय बोले

 

खुल गए दरीचे सब

कामना महल के।

 

धुंध के दुशालों से

सूर्य किरन हँसती

हवा उठा अवगुंठन

ख़ुशी में बहकती

 

आए हैं मधुरिम पल

दबे पाँव चलके।

     ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments