श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 109 – मनोज के दोहे… ☆

1 रतजगा

सैनिक करता रतजगा, सीमा पर है आज।

दो तरफा दुश्मन खड़े, खतरे में है ताज।।

2 प्रहरी

उत्तर में प्रहरी बना, खड़ा हिमालय राज।

दक्षिण में चहुँ ओर से, सागर पर है नाज।।

3 मलीन

मुख-मलीन मत कर प्रिये,चल नव देख प्रभात।

जीवन में दुख-सुख सभी, घिर आते अनुपात।।

4 उमंग

पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।

किला सिंहगढ़ का यहाँ, विजयी-शिवा तरंग।।

5 चुपचाप

महानगर में आ गए, हम फिर से चुपचाप।

देख रहे बहुमंजिला, गगन चुंबकी नाप ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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