श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पहलवान…।)

?अभी अभी # 214 ⇒ पहलवान… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

पहलवान धनवान भले ही ना होता हो, बलवान ज़रूर होता है। बिना पहल किए, कोई पहलवान नहीं बन सकता। वर्जिश और मालिश ही एक इंसान को पहलवान बनाती है। बाहर भले ही वह एक साधारण इंसान नजर आता हो, अखाड़े में वह भगवान होता है। जहां स्वर्ग है वहां भगवान है। जहां अखाड़ा है, वहां पहलवान है।

एक बार धनवान बनना आसान है, लेकिन पहलवान नहीं ! एक लॉटरी का टिकट, बाप दादा की वसीयत अथवा चार चार ऑप्शन, लाइफ लाइन और भाग्य के भरोसे, आप के बी सी के करोड़पति भी भले ही बन जाएं, लेकिन पहलवान बनने के लिए आपको कस कर कसरत तो करनी ही पड़ती है। किसी उस्ताद को गुरु बनाना पड़ता है, गंडा बांधना पड़ता है, अखाड़े की मिट्टी को सर से लगाना पड़ता है। बदन को तेल पिलाना पड़ता है, दंड बैठक लगानी पड़ती है।।

केवल रुस्तमे हिंद दारासिंह एक ऐसे पहलवान निकले जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में भी अपने दांव आजमाए। मुमताज जैसी अभिनेत्री के पर्दे पर नायक बने। कुछ भक्तों को जब हनुमान जी दर्शन देते हैं तो बिल्कुल दारासिंह नजर आते हैं और अरुण गोविल, प्रभु श्रीराम।

अखाड़े में राजनीति के दांव पेंच काम नहीं आते। पहलवानों की कुश्ती में राजनीतिज्ञों की तरह कसम, वादे और नारों से काम नहीं बनता। यहां जनता को मोहरा नहीं बनाया जाता। यहां दर्शक सिर्फ आपका हौंसला बढ़ाते हैं, ज़ोर आजमाइश तो आपको ही करनी पड़ती है। वोट की भीख, और जोड़ तोड़ से कुश्ती नहीं जीती जाती, यहां दांव लगाए जाते हैं, सामने वाले के पेंच ढीले किए जाते है। कुश्ती का फैसला अखाड़े में ही होता है, इसका कोई एक्जिट पोल नहीं होता।

राजनीति की तरह अखाड़े में भी झंडा और डंडा होता है। लेकिन झंडा अखाड़े की पताका होता है, उस्ताद के नाम से अखाड़े का नाम होता है। डमरू उस्ताद, छोगालाल उस्ताद, रुस्तम सिंह और झंडा सिंह की व्यायामशालाएं होती हैं, जहां किसी गुरुकुल की तरह ही पहलवानी की शिक्षा दीक्षा प्रदान की जाती है।।

पहलवान कभी घुटने नहीं टेकते। लेकिन यह भी सच है कि उम्र के साथ साथ जैसे जैसे वर्जिश कम होती जाती है, घुटने जवाब देने लग जाते है। कहा जाता है कि पहलवान का दिमाग घुटने में होता है लेकिन किसी भी रेडियोलॉजिकल जांच में इसका कोई प्रमाण आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है इसलिए किसी पहलवान के सामने ऐसी बे सिर पैर की बातें नहीं करनी, चाहिए, अन्यथा आपका दिमाग और घुटना एक होने का अंदेशा ज़रूर हो सकता है। वैसे भी राजनीतिज्ञों की तरह सातवें आसमान में रखने से अच्छा है, दिमाग को घुटने में ही रखा जाए। पांच साल में एक बार तो ये नेता भी जनता के सामने घुटनों के बल चलकर ही आते हैं।

कुछ पहलवान मालिश से हड्डी और मांसपेशियों के दर्द का इलाज भी करते हैं। इनका तेल, मलहम और सधी हुई उंगलियों की मालिश से मरीज को फायदा भी होता है। आम आदमी जो महंगे इलाज नहीं करवा पाता, इनकी ही शरण में जाता है। जहां दर्द से छुटकारा मिले, वही तो दवाखाना है।।

अब कहां वे अखाड़े और कहां वे पहलवान। लेकिन कुश्तियां फिर भी ज़िंदा हैं। आज की पीढ़ी भले ही जिम जाकर सिक्स पेक तैयार कर ले, ओलंपिक में तो आज भी पहलवानों का ही राज है। हो जाए इस बात पर ठंड में थोड़ी दंड बैठक ।।!!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments