सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार।आज प्रस्तुत है आपका विचारणीय संस्मरण  – अपेक्षा )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 22 ☆ 

? मेरी डायरी के पन्ने से… संस्मरण  – अपेक्षा ?

हमारा मोहल्ला काफ़ी बड़ा मोहल्ला है। मोहल्ले के सभी निवासी यहाँ की साफ़-सफ़ाई और बागवानी से खुश हैं। छोटे बच्चों के प्ले एरिया की विशेष देखभाल की जाती है। मच्छर न हों इसलिए नियमित औषधीय छिड़काव किए जाते हैं, धुआँ फैलाया जाता है। कुल मिलाकर आकर्षक परिसर है।

मोहल्ले में पिछले पंद्रह वर्षों से एक माली काका बाग – बगीचे की देख-रेख करते आ रहे हैं। मेहनती हैं, सुबह दस बजे से शाम के पाँच बजे तक लगातार श्रम करते हैं।

माली काका अब थक से गए हैं। कमर भी झुक गई है और चलने की गति भी कम हो गई है। खास किसी के साथ बतियाते नहीं। कभी- कभार बीड़ी फूँकते हैं। कॉलोनी के मैनेजर ने कई बार उन्हें टोका है। पर आदत छूटती कहाँ! झाड़ियों के पीछे छिपकर बीड़ी पीने से भी धुआँ कहाँ छिपता है भला? मालूम तो पड़ ही जाता है कि माली काका थकावट दूर करने के लिए बगीचे के एक कोने में बैठकर थोड़ा सुस्ताते हुए एक आध बीड़ी फूँक रहे हैं।

मैनेजर के कहने पर कल वह मोहल्ले के दफ्तर में चेयरमैन से मिलने गए थे। चेयरमैन रिटायर्ड आदमी हैं, सत्तर से अधिक उम्र है। इंजीनियर आदमी थे। अपने क्षेत्र के माहिर व्यक्ति थे वे जिस कारण रिटायर्मेंट के बाद अभी भी उसी कंपनी में वे कंसल्टेंट के पद पर हैं। मोहल्ले की देखभाल समाज सेवा की दृष्टि से करते हैं।

माली काका जब कमरे में आए तब वे किसी से मोबाइल पर बात करते हुए व्यस्त थे तो इशारे से उसे बैठने के लिए कहा। संकोचवश माली काका कमरे से बाहर निकलकर दीवार से पीठ टेककर सुस्ताते हुए बैठ गए। पाँच बज चुके थे, उनके घर जाने का भी समय हो रहा था।

चेयरमैन अपनी बात पूरी करके कमरे से बाहर आए। एक मचिये पर साहब बैठ गए और माली काका से बोले

 – कैसे हैं माली काका ?

– ठीक हूँ साहिब। आपकी दुआ है।

– अरे नहीं, सब ईश्वर की कृपा है। काका अब आपकी उम्र कितनी हो गई है ?

– साहिब साठ -बासठ होगा ! हम अनपढ़ गिनती क्या जानें साहिब!

– थके से लगने लगे हैं अब । अच्छा, वे केले के पेड़ लगाए थे उस पर फल लगे कि नहीं ?

– हाँ साहिब बहुत फल लगे थे

(काका के चेहरे पर अचानक चमक आ गई मानो कोई उनसे उनके अपने सफल बच्चों की खैरियत पूछ रहा हो।)

 – साहिब सभी घर में दो-तीन, दो-तीन केले बाँट दिए थे। (हँसकर) अपना मोहल्ला बहुत बड़ा भी है न साहिब तो हर घर में थोड़ा- थोड़ा बाँट दिया।

– अरे वाह! यह तो बहुत अच्छा किया।

(थोड़ा रुककर) मोहल्लेवालों को अब आप पर दया आने लगी है ।

– क्यों साहिब?

– अब आपकी उम्र काफ़ी हो गई है, साथ में इतनी धूप, बारिश में काम करते रहते हैं।

– सो तो साहिब हम माली हैं काम है हमारा, पौधे -पेड़ हमारी औलादें जो ठहरी ! देखभाल तो करनी ही पड़ेगी न साहिब।

– हूँ, हम लोग सोच रहे थे… कि काका हर महीने में हम कुछ पेंशन देंगे आपको, आप अब रिटायर हो जाइए।

– साहिब ये क्या बोल गए आप! मैं घर बैठकर क्या करूँगा? फिर पेट चलाने को पगार भी कम पड़ता है तो पेंशन से रोटी कैसे चलेगी साहिब! दो बखत तो रोटी चाहिए न साहिब!

– हाँ, इसलिए ही तो पेंशन देंगे आपको।

 काका कुछ देर चुप रहे फिर अचानक बोले,

– साहिब हमें कनसूलेट बना दो!

– माने ?

– साहब आप को भी तो रिटायर होकर बहुत साल हो गए न, आप कंपनी में कनसूलेट हैं न! आप अभी भी तो कुछ घंटों के लिए कंपनी जाते हैं।

– आपको कैसे पता?

– साहिब आपका डिराइवर बता रहा था कि साहब कंपनी में बहुत फेमस हैं, बहुत मेहनती हैं और बहुत अच्छा काम करते हैं इसलिए कंपनीवाले छोड़ते नहीं आपको।

– अच्छा ! (हँसकर) बड़ी खबर रखते हैं आप काका।

– (अपना सिर खुजाते हुए) नहीं साहिब, क्या है के हम भी पंद्रह साल से दिन रात इस कालोनी में खपते रहे। कनसूलेट बन गए तो दूसरे मालियों को टरेनिंग देंगे, काम सिखाएँगे। मोहल्ला सुंदर भी बना रहेगा हमारा पेट भी भरा रहेगा।

माली काका की बातें सुनकर चेयरमैन अचंभित अवश्य हुए पर अनपढ़ व्यक्ति की दुनियादारी और जागरुकता देखकर मन ही मन प्रसन्न भी हुए।

– ठीक है काका हम मीटिंग में तय करके आपको बताएँगे।

– ध्यान रखना हमारा साहिब, हम कनसूलेट बनकर और ज्यादा काम करेंगे। नमस्ते साहिब ।

नमस्ते कहकर चेयरमैन बुदबुदाए – कंसल्टेंट बनकर काम करने की अपेक्षा रखने की आवश्यकता अब हर लेवल पर है यह बात तो स्पष्ट हो गई। रिटायर होना तो बस एक बहाना भर है वरना कमाई किसे नहीं चाहिए भला।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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