डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत –सच सच कहना।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 162 – गीत – सच सच कहना…  ✍

सच सच कहना मुझसे पहले और कभी खटका था द्वार ?

 

राजमार्ग के ठीक किनारे

बना हुआ है घर तेरा

कितने चेहरे आते जाते

होता कितनों का फेरा।

जान बूझकर था कि भूल से और कभी भी सुनी गुहार

 

शक सन्देह नहीं है तुम पर

पर विश्वास पनपता है

कमजोरी है हर मनुष्य की

रूप कि अच्छा लगता है

ऐसा कोई रूप विमोही क्या पहले भी गया पुकार

 

सिर्फ सवाल किये हैं मैंने

बिल्कुल नहीं बुरा मानो

मेरे मन की क्या बतलाऊँ

अपने मन की तुम जानो।

सच सच कहना मुझसे पहले और कभी खटका था द्वार ?

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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