श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “मजबूत शिला सी दृढ़ छाती। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 173 ☆

☆ मजबूत शिला सी दृढ़ छाती… ☆

परिस्थितियों के अनुसार एक ही शब्द के अलग- अलग अर्थ हो जाते हैं। सुनने वाला वही समझता है, जो उसके मन की कल्पना होती है और दोषारोपण दूसरे पर कर देता है।

ऐसा ही आपसी संबंधों में देखने को मिलता है। हमारी एक दूसरे से इतनी अपेक्षाएँ होती हैं कि जिनके पूरा न होने से एक अनचाही दीवार बन जाती है जिसे समय रहते न गिराया गया तो  सम्बन्धों में दरार निश्चित है। दृढ़तापूर्वक जब लक्ष्य निर्धारित हो और उसे पूरा करने के लिए जी जान से लोग जुटे हों तो परिणाम अप्रत्याशित होते हैं।

कदम फूँक-फूँक कर रखते हुए चलने से देरी भले हो रही हो किंतु धोखा होने की गुंजाइश नहीं रह जाती है। जनता जनार्दन जरूर होती है पर पूजा के समय का  निर्धारण पुजारी द्वारा होता है। सारे दावेदार भले ही शक्ति का दम्भ भरते दिखाई दे रहें हो लेकिन होगा वही जो ऊपर वाला चाहेगा।

चाहत और राहत का किस्सा साथ- साथ नहीं चल सकता है, चेहरा नए मोहरे के साथ जब भी आएगा कोई न कोई कमाल दिखायेगा। वक्त की आवाज परिवर्तन की माँग उठा रही है। सभी अपनी- अपनी शक्ति जरूर दिखा रहे हैं लेकिन शीर्ष नेतृत्व दूरगामी परिणामों  को ध्यान में रखकर युवा पीढ़ी पर विश्वास जताना चाहता है। जब तक नयापन न हो मजा नहीं आता। संगठन केवल पुराने कार्यों के लेखा – जोखा को ध्यान में रखकर यदि निर्णय लेता है तो नए को मौका कैसे मिलेगा। जब स्थिति मजबूत हो तो नवीन प्रयोग  करने चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments