श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  माँ)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 158 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “माँ” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

एक युद्ध घर के बँटवारे का

सहने को तत्पर, माँ

और दूसरा देख रही बेटों में

आज भयंकर, माँ

 

बहुओं का युद्धाभ्यास

समझाता है इस आशय को

सालेगा अपमान सहित

जो बढी हुई माँ की वय को

 

इन सब का अनदेखा करती

रोज शिवाला जाती है

सहज दिखाई देती हर क्षण

संस्कार की आकर,  माँ

 

इस घर की गतिविधियाँ ध्वंसक

रोज संवरण करने में

धो लेती है समय-समय पर

जिन्हें अश्रु के झरने में

 

सॉंझ सकारे सामंजस्य बिठाने

में खटती रहती

गोया माँ, माँ न होकर

इस घर की हो बस चाकर , माँ

 

सपने कैसे चूर- चूर

होते हैं यह उसने जाना

और यही है नियति विश्व की

यह भी उसने अब माना

 

और कभी इस घर में मंगल

का जिसने रोपा पौधा

उसकी खातिर रहजाती है

जी सहला- सहला कर, माँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

30-09-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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