(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है गांधी जयंती पर एक विशेष कविता – गांधी जिंदा हैं, है न)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 233 ☆

? कविता – गांधी जिंदा हैं, है न…? ?

गांधी जिंदा हैं!

कागज के नोटों पर छपे,

बेजुबान चित्र में नहीं।

बापू की उपाधि में नहीं

संगमरमरी समाधि में भी नहीं।

समाधि पर जलते

दिये की अनवरत लौ में नहीं।

योजनाओ के नामों की

रौ में नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

छलावे के अनशन और

राजनीतिक आंदोलन में नहीं

निबंध में लिखे कोट्स में ही नहीं

इमारतों के साइन बोर्डस 

की इबारतों में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

स्वच्छता के चश्मे

या झाड़ू के निशान में नहीं।

हाथ में लाठी

या खादी की धोती में भी नहीं।

चरखे में नहीं, सूत में नहीं।

बकरी के दूध में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

दफ्तरों की दीवारों पर टंगें

फ्रेम किये अपने ही फोटो में नहीं।

वाशिंगटन, न्यूयार्क, मास्को,

देश विदेश में स्मारकों में लगी

त्रिआयामी

आदमकद मूर्तियों में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

जिल्द बंद सफों में लिखी गई

अनगिनत जीवनियों में नहीं।

विकीपीडीया, व्हाट्सअप के भ्रामक संदेशों

गूगल पे क्लिक से निकली

इंफार्मेशन में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

परिवार के

नाती पोते पड़पोते में नहीं।

ब्लाक बस्टर किसी मुन्ना भाई या

आस्कर पुरस्कार से सम्मानित

फिल्म में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

अष्ट धातु या चांदी के सिक्के

पर मुद्रित जानी पहचानी मुद्रा

में नहीं।

पी एच डी की थिसिस में ही नहीं

क्विज के सवालों

और चार विकल्पों के जबाबों में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

गांधी जिंदा हैं!

मुंह बंद, आंख बंद और

कान बंद, तीन बंदरों की

मूर्तियों में नहीं

संग्रहालयों के वाङ्मय

और कमर में लटकाने वाली

उनकी अब बंद घड़ी में भी नहीं।

गांधी जिंदा हैं! हैं न!

 

दरअसल, गांधी जिंदा हैं!

अंत्योदय के व्यवहार में!

सत्य के लिये संघर्ष में!

गीता के सार में!

अहिंसा में, शाकाहार में

चुटकी भर नमक में

परस्पर प्रेम और विश्वास में।

सादगी और दुनियाई भाई चारे में।

गांधी जिंदा हैं! है ना!

 

गांधी को भारत की सीमा में

मत बांधो दुनियांवालों

हे राम! के साथ अचानक रोक दिया गया

अधूरा स्वप्न हैं गांधी।

गांधी विचार हैं, और

विचार वैश्विक होते हैं। विचार मरते नहीं कभी।

गांधी जिंदा हैं! है ना!

 

गांधी यात्रा हैं, विचारों की अंतहीन यात्रा।

गांधी महज १४० करोड़ भारत वासियों के नहीं

आठ अरब की दुनियां की थाथी हैं

गांधी हर दुर्बल के साथी हैं

जब, जहां कहीं बुनियादी बातें होंगीं

धोती संभाले कृशकाय

हे राम कहते

वे अपनी लाठी उठा उठ आयेंगे

क्योंकि गांधी जिंदा हैं! है ना!

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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