श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है रक्षाबंधन पर्व पर कुछ दोहे…” । )

☆ तन्मय साहित्य  #198 ☆

☆ रक्षाबंधन पर्व पर कुछ दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

रक्षाबंधन पर्व यह, भाई-बहन  का  प्यार।

शुभ संकल्पित भाव का, शुभ पुनीत त्यौहार।।

इन धागों में है छुपा, असीमित  निश्छल नेह।

ज्यूँ भादो में अनवरत, बरसे बादल मेह।।

राखी पर्व पवित्र यह, रखें बहन का ध्यान।

बहनों के आशीष से, मिले सुखद सम्मान।।

रक्षाबंधन सूत्र यह, बाँधे स्नेहिल गाँठ।

भाई-बहन के प्रेम का, पुण्यमई यह पाठ।।

विपदाओं के वक्त में, इक-दूजे के साथ।

कष्ट मिटे सहयोग से, लें हाथों में हाथ।।

बंधु अनुज है पुत्र सम, अग्रज पिता समान।

बँध कर रक्षा सूत्र में, बढ़े  सभी की शान।।

 स्नेहिल पावन पुण्यमय, सौम्य-शिष्ट यह पर्व।

 सनातनी  सद्भाव  की, परम्परा पर गर्व।।

मेह, नेह के सावनी, बरसे सुखद फुहार।

राखी के धागे भीगे, पुलकित पावन प्यार।।

 भाई-बहन के बीच में, जीवन भर की प्रीत।

 रक्षाबंधन पर्व यह, सुखद मधुर संगीत।।

 पर्वोत्सव व्रत धर्म का, पारंपरिक प्रवाह।

 बहन बेटियों पर टिकी, सत्पथ की ये राह।।

 संस्कृति की संवाहिका, संस्कारों की खान।

 स्नेहिल मन भाई-बहन, बनी रहे मुस्कान।।

 झिरमिर झिरमिर सावनी, पावस प्रीत फुहार।

 राखी हाथ लिए खड़ी, मन में संचित प्यार।।

बहनों में माँ के सदृश, ममता नेह अपार।

निश्छल निर्मल प्रेममय, करुणा का आगार।।

सुधापान सद्भावमय, प्रीत प्रेममय भाव।

संबंधों की ताप के, बुझे न कभी अलाव।।

बहन बेटियों का रखें, निश्छल मन से ध्यान।

नहीं भूल से भी कभी, हो इनका अपमान।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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