सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा वृत्तांत – काज़ीरंगा)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 21 ☆ 
? मेरी डायरी के पन्ने से…  – यात्रा वृत्तांत – मॉरिशस की मेरी सुखद स्मृतियाँ ?

June 2023 में पाँच अरबपतियों को लेकर टाइटैनिक दिखाने की यात्रा के लिए निकली पनडुब्बी का मलबा मिला है। एक अति उत्कृष्ट, अति उत्तम अत्याधुनिक पनडुब्बी जिसमें 96घंटे तक की ऑक्सीजन की व्यवस्था थी, फिर भी किसी कारणवश समुद्र की सतह पर यह पनडुब्बी लौटकर न आई। टाइटैनिक से चार सौ मीटर की दूरी पर पनडुब्बी में विस्फोट हुआ और भीतर बैठे लोगों के चिथड़े उड़ गए।

इस अत्यंत दुखद घटना को सुनकर, उसकी तस्वीरें देखकर, दर्दनाक घटना का विस्तार पढ़कर मैं भीतर तक सिहर उठी।

मुझे अपनी एक अद्भुत यात्रा आज अचानक स्मरण हो आई। यद्यपि मेरी यात्रा सुखद तथा अविस्मरणीय रही। बस दोनों में समानता पनडुब्बी द्वारा समुद्र के तल में जाने की ही है।

2002 दिसंबर

यह महीना मॉरिशस में बारिश का मौसम होता है। हमारे विवाह की यह पच्चीसवीं वर्षगाँठ थी और हम दोनों ने ही इसे मॉरिशस में मनाने का निर्णय बहुत पहले से ही ले रखा था।

मॉरिशस एक सुंदर छोटा देश है। समुद्र से घिरा हुआ यह देश अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। यह सुंदर द्वीपों का देश हिंद महासागर में बसा है। । सभी द्वीपों पर जनवास नहीं है। कई लोग इस राज्य को भारत से दूर छोटा भारत भी कहते हैं क्योंकि यहाँ बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं।

मॉरिशस में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। अंग्रेज़ी और फ्रेंच यहाँ की मुख्य भाषाएँ तो हैं ही साथ ही यहाँ बड़ी संख्या में रहनेवाले भारतीय भोजपुरी भी बोलते हैं जो बोली मात्र है।

सन 1800 के दशक में भारत पर ही नहीं पृथ्वी के कई देशों पर अंग्रेज़ों का आधिपत्य रहा है। हर जगह से ही काम करने के लिए मज़दूर ले जाए जाते थे। क्या अफ्रीका और क्या भारत।

उन दिनों भारत में अकाल पड़ने के कारण अन्न का भयंकर अभाव था। लोग भूख के कारण मरने लगे थे। ऐसे समय पाँच वर्ष के एग्रीमेंट के साथ मजदूरों को जहाज़ द्वारा मॉरिशस ले जाया जाता था।

ये मजदूर अनपढ़ थे। एग्रीमेंट को वे गिरमिट कहा करते थे। आगे चलकर अफ़्रीका और अन्य सभी स्थानों पर भारत से ले जाए गए मजदूर गिरमिटिया मजदूर कहलाए। यह बात और है कि अंग्रेज़ों ने उन पर अत्याचार किए, वादे के मुताबिक वेतन नहीं देते थे। पर मजदूरों के पास लौटकर आने का कोई मार्ग न था।

मॉरिशस गन्ने के उत्पादन के क्षेत्र में बहुत आगे था। बड़ी मात्रा में यहाँ शक्कर की मिलों में शक्कर बनाई जाती थी। खेतों में गन्ने उगाने, कटाई करने, मिल तक गन्ने ले जाने और शक्कर उत्पादन करने तक भारी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी। यही कारण था कि बिहार से बड़ी संख्या में मजदूर वहाँ पहुँचाए गए। आज़ादी के बाद सारे मज़दूर वहीं बस गए।

आज यहाँ रहनेवाले भारतीय न केवल यहाँ के स्थायी निवासी हैं बल्कि उच्च शिक्षित भी हैं और अधिकांश होटल, जहाज, भ्रमण तथा अन्य व्यापार के क्षेत्र में भारतीय ही अग्रगण्य हैं।

हिंदू धर्म को भी मॉरीशस में भारतीयों द्वारा ले जाया गया था। आज, मॉरीशस में हिंदू धर्म सबसे अधिक पालन किया जाने वाला धर्म है।

यहाँ कई मंदिर बने हुए हैं। श्रीराम -सीता माई और लक्ष्मण का भव्य मंदिर है। राधा कृष्ण, साईबाबा का भी मंदिर है। कुछ वर्ष पूर्व बालाजी का भी मंदिर बनाया गया है।

यहाँ एक झरने के बीच एक विशाल शिव लिंग है। यहीं पर बड़ी -सी माता की मूर्ति भी है। आज सभी जगहों पर आस पास अनेक छोटे -बड़े मंदिर बनाए गए हैं। शिव लिंग पर जल चढ़ाने के लिए ऊँची सीढ़ी बनी हुई है।

मेरा यह अनुभव साल 2002 का है। आज इक्कीस वर्ष के पश्चात यह राज्य निश्चित ही बहुत बदल चुका होगा।

हम पोर्ट लुई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड् डे पर उतरे, उन दिनों यह एक छोटा-सा ही हवाई अड् डा था। मृदुभाषी तथा सहायता के लिए तत्पर लोग मिले। हमें इस द्वीप समूह के राज्य में अच्छा स्वागत मिला।

गाड़ी से हम अपने पूर्व नियोजित होटल की ओर निकले। गाड़ी होटल की ओर से ही हमें लेने आई थी जिस कारण हमें किसी प्रकार की चिंता न थी।

सड़क के दोनों ओर गन्ने के खेत थे। बीच -बीच में लोगों के घर दिखाई देते। हिंदुओं के घर के परिसर में छोटा – सा मंदिर दिखाई देता और उस पर लगा नारंगी रंग का गोटेदार झंडा। अद्भुत आनंददायी अनुभव रहा।

हम जिस दिन मॉरिशस पहुँचे उस दिन शाम ढल गई थी इसलिए थोड़ा फ्रेश होकर होटल के सामने ही समुद्र तट था हम वहाँ सैर करने निकल गए। सर्द हवा, चलते -फिरते लोग साफ – सुथरा तट मन को भा रहा था।

दूसरे दिन सुबह हम एक क्रेटर देखने गए। यह विशाल क्रेटर एक पहाड़ी इलाके पर स्थित है। इस पहाड़ी पर खड़े होकर नीचे स्थित समुद्र, दूर खड़े पहाड़ की चोटियाँ आकर्षक दिख रहे थे।

वह विशाल क्रेटर हराभरा है। कई विशाल वृक्ष इसके भीतर उगे हुए दिखाई दिए। यह क्रेटर गहरा भी है। बारिश के मौसम में कभी – कभी इसके तल में काफी पानी जम जाता है। यहाँ के दृश्य अति रमणीय और आँखों को ठंडक पहुँचानेवाले दृश्य थे। इसे हम ऊपर से ही देख सकते थे इसमें उतरने की कोई सुविधा नहीं थी। लौटते समय हम कुछ मंदिरों के दर्शन कर लौटे। शिव मंदिर में सीढ़ी चढ़कर शिवलिंग पर जल डालने का भी सौभागय मिला।

तीसरे दिन हम कैटामरान में बैठकर विविध द्वीप देखने गए। यह कैटामरान तीव्र गति से चलनेवाली छोटा जहाज़नुमा मोटर से चलनेवाली नाव ही होती है जिसमें दोनों छोर पर जालियाँ लगी रहती हैं। इन जालियों पर लोग लेटकर यात्रा करते हैं। पीठ पर समुद्र का खारा जल लगकर पीठ की अच्छी मालिश होती है ….. बाद में पीठ में भयंकर पीड़ा होती है। हमारी नाव में छह जवान लोगों ने इसका आनंद लिया और वे उस पीड़ा को सहने को भी तैयार थे यह एक चैलेंज था।

हम दो – तीन द्वीपों पर गए। एक द्वीप पर ताज़ी मछलियाँ पकड़ी गईं और नाव पर पकाकर सैलानियों को खिलाई गईं। हम निरामिष भोजियों को सलाद से काम चलाना पड़ा।

इससे आगे एक और द्वीप पर गए जहाँ पानी में उतरकर तैरने और स्नॉकलिंग के लिए कुछ देर तट पर रुके रहे। वहाँ रेत से मैंने ढेर सारे मृत कॉरल एकत्रित किए, शंख भी चुने। वहाँ की रेत बहुत शुभ्र और महीन है। पानी अत्यंत स्वच्छ और गहरा नीला दिखता है।

चौथे दिन हम पहले एक अति वयस्क कछुआ देखने गए जिसकी उम्र तीन सौ वर्ष के करीब बताई गई थी। उस स्थान के पास सेवन लेयर्स ऑफ़ सैंड नामक जगह देखने गए। यहाँ ज़मीन पर सात रंगों की महीन रेत की परतें दिखीं। छोटी सी नलिका में ये रेत भरकर सॉविनियर के रूप में बेचते भी हैं। मॉरिशस में भी रुपया चलता है पर वह उनकी करेंसी है जो भारत की तुलना में बेहतर है। एक सौ मॉरिशस रुपये एक सौ अट्ठ्यासी भारतीय रुपये के बराबर है। (जनवरी 2023 रिपोर्ट)

इसी स्थान से थोड़ी दूरी पर हमने बड़े -बड़े धारणातीत तितलियों के झुंड देखे। ये नेटवाले एक बगीचे में दिखाई दिए। इस स्थान का नाम है ला विनाइल नैशनल पार्क यहाँ बहुत बड़ी संख्या में नाइल नदी के मगरमच्छ भी पाले जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक मगरमच्छ के चमड़े से वस्तुएँ बनाने के व्यापार चलता था। अब यह गैर कानूनी है।

इसी शहर में नाव बनाने के कारखाने भी हैं। साथ ही घर में सजाकर रखने के लिए भी छोटी-छोटी आकर्षक नावें हाथ से बनाई जाती हैं। सैलानी सोवेनियर के रूप में उन्हें खरीदते हैं। यह कुटीर उद्योग नहीं बल्कि बड़ा व्यापार क्षेत्र है। सैलानी सोवेनियर के रूप में नाव, जहाज़ आदि छोटी -छोटी सजाने की वस्तुएँ खरीदते हैं।

पाँचवे दिन हम एक और द्वीप में गए जहाँ अफ्रीका के निवासियों ने अपने ड्रम और नृत्य द्वारा हम सबका मनोरंजन किया। इस द्वीप पर ताज़ा भोजन पकाकर स्थानीय विशाल वृक्षों के नीचे मेज़ लगाकर बड़े स्नेह से सबको भोजन परोस कर खिलाया गया। मॉरिशस में आमिष भोजन ही अधिक खाते हैं। बड़ी- बड़ी झींगा मछली जिसे लॉबस्टर्स कहते हैं, खूब पकाकर खाते हैं। हम निरामिष भोजियों को

पोटेटो जैकेट विथ सलाद खिलाया गया। यह अंग्रेज़ों का प्रिय भोजन होता है। बड़े से उबले आलू के भीतर बेक्ड बीन्स और चीज़ डालकर इसे आग पर भूना जाता है। होटलों में इसे आज माईक्रोऑवेन में पकाते हैं। संप्रति लंडन में भी हमें इस व्यंजन का आनंद लेने का अवसर मिला।

छठवें दिन हम सुबह -सुबह ही एक जहाज़ में बैठकर समुद्र के थोड़े गहन हिस्से तक गए। हमें सी बेल्ट वॉकिंग का आनंद लेना था।

हमारे सिर पर संपूर्ण काँच से बनी पारदर्शी हेलमेट जैसी ऑक्सीजन मास्क पहनाई गई। फिर हम जहाज़ की एक छोर से सीढ़ी द्वारा समुद्र के तल पर उतरे। यह सीढ़ी जहाज़ के साथ ही समुद्र तल तक होती है। यह गहराई तीन से चार मीटर की होती है। हमारे हाथ में ब्रेड दिया गया और मछलियाँ उसे खाने के लिए हमारे चारों तरफ चक्कर काटने लगीं।

मछलियों के झुंड को अपने चारों ओर तैरते देख मैं भयभीत हो उठी और गाइड से मुझे ऊपर ले जाने के लिए इशारा किया। बलबीर काफी देर तक समुद्र तल में चलते रहे और मछलियों को ब्रेड भी खिलाते रहे। मौसम वर्षा का था, आसमान में मेघ छाया हुआ था जिस कारण पानी के नीचे प्रकाश भी कम था। मेरे घबराने का वह भी एक कारण था। खैर यह हम दोनों के लिए ही एक अलग अनुभव था।

उस दिन हमारे विवाह वर्षगाँठ की पच्चीसवीं सालगिरह का भी दिन था तो हमने पनडुब्बी में बैठकर समुद्र के नीचे घूमने जाने का भी कार्यक्रम बनाया था। दोपहर को एक लोकल रेस्तराँ में मन पसंद भोजन किया और दोपहर के तीन बजे पनडुब्बी सैर के लिए ब्लू सफारी सबमरीन कंपनी के दफ्तर पहुँचे।

हमसे कुछ फॉर्म्स पर हस्ताक्षर लिए गए कि किसी भी प्रकार की दुर्घटना के लिए कंपनी ज़िम्मेदार नहीं है। यह उस राज्य और कंपनी का नियम हैं। सबमैरीन के विषय में साधारण जानकारी देकर हमें पनडुब्बी में बिठाया गया। कैप्टेन एक फ्रांसिसी व्यक्ति था। उसने बताया कि हम दो घंटों के लिए सैर करने जा रहे थे। पनडुब्बी पैंतीस मीटर की गहराई तक जाएगी। थोड़ी घबराहट के साथ हम दोनों अपनी सीटों पर बैठ गए।

पाठकों को बताएँ कि इसमें केवल छह लोगों के बैठने की जगह होती है। भीतर पर्याप्त ऑक्सीजन की मात्रा होती है जो चार दिनों तक पानी के नीचे रहने में सहायक होती है। हम कुल चार लोग थे और कप्तान साथ में थे।

हम धीरे -धीरे पानी में उतरने लगे। चारों तरफ अथाह समुद्र का जल और समुद्री प्राणियों के बीच हम ! अद्भुत रोमांच की अनुभूति का क्षण था वह। आज भी उसे याद कर रोंगटे खड़े होते हैं। कई प्रकार की रंग- बिरंगी मछलियाँ हमारी खिड़कियों से दिख रही थीं। जल स्वच्छ!जब कोई बड़ी मछली रेत से निकलकर बाहर तैरती तो ढेर सारी रेत उछालकर अपनी सुरक्षा हेतु एक धुँधलापन पैदा कर देती।

धीरे -धीरे हम समुद्री तल पर उतरने लगे। हमें एक ऐसे जहाज़ के पास ले जाया गया जो कोई चालीस वर्ष पूर्व डूब गया था और अब उस पर जीवाश्म दिखाई दे रहे थे। कुछ दूरी पर एक खोह जैसी जगह पर बड़ी – सी ईल अपना मुँह बाहर किए बैठी थी। कैप्टेन ने बताया कि उसे मोरे ईल कहते हैं। वे बड़ी संख्या में हिंदमहासागर में पाए जाते हैं। उसके मुँह के छोटे छोटे दाँत स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। अचानक एक ऑक्टोपस अपने अष्टपद संभालता हुआ झट से पास से निकल गया। हमें तस्वीर लेने का भी मौक़ा नहीं मिला। हमारी पनडुब्बी अभी नीचे ही थी कि हमें कुछ स्टिंग रे दिखे, अच्छे बड़े आकार के थे सभी।

और भी कई प्रकार की बड़ी मछलियाँ दिखाई दीं। क्या ही अद्भुत नज़ारा था। समुद्री तल में रंगीन कॉरल्स बहुत आकर्षक दिखाई दे रहे थे। नीचे कुछ बड़े आकार के केंकड़े भी दिखे।

समुद्र में कई अद्भुत वनस्पतियाँ भी थीं।

कप्तान ने बताया कि उन वनस्पतियों को ईलग्रास कहते हैं। वे पीले से रंग के होते हैं। इन वनस्पतियों पर कई जीव निर्भर भी करते हैं। कप्तान ने बताया कि चूँकि हिंद महासागर, महासागरों में तृतीय स्थान रखता है साथ ही यह पृथ्वी के तापमान और मौसम को प्रभावित भी करता है तथा कुछ हद तक उस पर अंकुश भी रखता है।

अब धीरे -धीरे हम ऊपर की ओर आने लगे। कई विभिन्न मछलियों की प्रजातियाँ पनडुब्बी को ऊपर आते देख तुरंत ही गति से दूर चली जातीं जिन्हें देखने में आनंद आ रहा था। हम जब अपनी यात्रा पूरी करके बाहर निकले तो हमें सर्टीफ़िकेट भी दिए गए। हम दोनों के लिए यह सब चिरस्मरणीय यात्रा रही।

हम होटल लौटकर आए। तो रिसेप्शन में बताया गया कि होटल के मालिक द्वारा हमारे खास दिन के लिए एक छोटा आयोजन रखा गया था। हम रात्रि भोजन करने के लिए जब होटल के रेस्तराँ में पहुँचे तो वहाँ लाइव बैंड बजाकर हमारा स्वागत किया गया। उपस्थित अतिथियों ने खड़े होकर तालियाँ बजाकर हमें शुभकामनाएँ दीं। फिर वहाँ का भारतीय मैनेजर एक बड़े से ट्रे में एक सुंदर सुसज्जित केक ले आया। केक कटिंग के समय फिर लाइव बैंड बजा और सभी अतिथि हमारी मेज़ के पास आ गए। सबने मिलकर हमारी पच्चीसवीं एनीवर्सरी का आनंद मनाया।

हम दोनों अत्यंत साधारण जीवन जीने वाले लोग हैं, इस तरह के आवभगत के हम आदि नहीं थे न हैं। देश से दूर परदेसियों के बीच अपनापन मिला तो आनंद भी बहुत आया।

अगले दिन रात को हम भारत लौटने वाले थे। देर रात हमारी मुम्बई के लिए फ्लाइट थी। होटल का मैनेजर भारतीय था। वह मुम्बई का ही मूल निवासी भी था। उसने अपने घर पर हमें डिनर के लिए आमंत्रित किया। उसकी पत्नी ने काँच की तश्तरी में पेंट करके हमें उपहार भी दिए।

इस प्रकार के अपनत्व और स्नेह सिक्त अनुभव को हृदय में समेटकर आठ दिनों की यात्रा समाप्त कर हम स्वदेश लौट आए। आज इतने वर्ष हो गए पर सारी स्मॅतियाँ किसी चलचित्र की तरह मानस पटल पर बसी हैं। सच आज भी वहाँ के भारतीय हमसे अधिक अपनी संस्कृति से बँधे और जुड़े हुए हैं।

© सुश्री ऋता सिंह

10/12/2022, 10.30 pm

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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