श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ संजय उवाच # 201 ऋणानुबंध ?

प्रातः भ्रमण से लौट रहा हूँ। देखता हूँ कि एक दुकानदार अपनी दुकान के सामने कौओं को चुग्गा दे रहा है। चुग्गे के लिए कौओं की भीड़ लगी हुई है। कौए निरंतर काँव-काँव कर रहे हैं। सड़क पर एकत्रित कौओं की तरफ कुछ चुग्गा उसने फेंक दिया है। वे एक दाना उठाते हैं, फिर अपनी बड़ी-सी चोंच खोलकर काँव-काँव करने लगते हैं।

दुकानदार का मुँहलगा एक कौआ दुकान के बाहर लगे खंभे पर लटका हुआ है। उसकी और दुकानदार की केमिस्ट्री भी खूब है। खंभे पर लटककर वह नीचे की ओर मुँह कर दुकानदार को देखता है और कहता है, ‘काँव।’ दुकानदार निशाना साधकर चुग्गा उसकी और उछालता है, कौवा हवा में ही उसे मुँह में लपक लेता है। वर्तमान में जब मनुष्य का प्रकृति के अधिकांश जीवों के साथ संघर्ष का नाता है, ऐसा कोई दृश्य अनन्य ही कहलाएगा।

सत्य तो यह है कि मनुष्य और प्रकृति के अन्य सभी घटक सहजीवी हैं। हमारी कठिनाई यह है कि हमने सहजीवी होने का भाव छोड़ दिया है। ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि का मुकुट दिया है। बुद्धि का मुकुट देने का अर्थ है कि उसे प्रकृति का साम्राज्य दिया है। सम्राट बुद्धिमान हो, शौर्यवान हो, यह तो अपेक्षित है लेकिन साथ ही सम्राट के मन में अपनी प्रजा के लिए करुणा का सागर भी होना चाहिए।

हमारा मत है कि यदि केवल भारत का हर एक नागरिक किसी एक पक्षी या प्राणी का पेट पालने की ज़िम्मेदारी ले ले तो कम से कम डेढ़ सौ करोड़ प्राणियों को तो जीवनदान मिल ही सकेगा। हर कोई यह कर सकता है क्योंकि ग़रीब से ग़रीब को भी एक चिड़िया का पेट भरने जितनी अमीरी तो ईश्वर ने दी ही है।

पक्षियों-प्राणियों को भोजन उपलब्ध कराने की भावना पर अनेक बार प्रश्न उठाया जाता है कि ऐसा करके उनकी भोजन जुटाने की प्राकृतिक क्षमता को नष्ट नहीं करना चाहिए। मनुष्य भी एक समय पैदल ही चला करता था। फिर पशुओं पर सवारी करते हुए हवाई जहाज़ और अंतरिक्ष यान तक आ पहुँचा। आदिमानव संभवत: भोजन संग्रह करना भी न जानता हो। आज के मनुष्य के पास कई सालों के लिए अनाज संग्रहित है। कहने का तात्पर्य है कि परिवर्तन संसार का एकमात्र नियम है जो कभी परिवर्तित नहीं होता। मनुष्य द्वारा प्रकृति के निरंतर दोहन के चलते सहज जीवन से विस्थापित होते सभी घटकों के प्रति मनुष्य का ऋणानुबंध है। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह इन घटकों का पोषण करे।

श्रीमद्भागवत कहता है,

खं वायुमग्निं सलिलं महीं च ज्योतींषि सत्त्वानि दिशो द्रुमादीन्।
सरित्समुद्रांश्च हरेः शरीरं यत्किंच भूतं प्रणमेदनन्यः॥

(11/2/41)

अर्थात आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, नक्षत्र, प्राणी, दिशाएँ, वृक्ष-वनस्पति, नदियाँ, समुद्र आदि जो कुछ भूत सृष्टि है, वह सब हरिरूप है, ईश्वर का विराट स्वरूप है। यह समझकर ( भक्त) प्रेमभाव से इन्हें प्रणाम करते हैं।

श्रावण चल रहा है। एक पौधा लगाएँ, एक प्राणी का पेट भरने का ज़िम्मा उठाएँ। एक समय था, जब हमारे घरों में पहली रोटी गाय के लिए और अंतिम श्वान के लिए बनती थी। हमारे पूर्वजों ने अपने दायित्व का निर्वहन प्रामाणिकता से किया था। उनके कारण हमें हरी-भरी और भरी-पूरी प्रकृति मिली थी। अब हमारी बारी है कि हम आनेवाली पीढ़ी को हरा संसार दें।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ महादेव साधना- यह साधना मंगलवार दि. 4 जुलाई आरम्भ होकर रक्षाबंधन तदनुसार बुधवार 30 अगस्त तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नमः शिवाय 🕉️ साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ  🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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