श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “कहत धतूरे सों कनक, गहनों गढ़ो न जाए…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 155 ☆

☆ क्षणे नष्टे कुतो विद्या, कणे नष्टे कुतो धनम्

गणित का एक सूत्र है (माइनस + माइनस) = 2 माइनस अर्थात वे जुड़ जाते हैं। इसे कहावत के रूप में समझें तो चोर-चोर मौसेरे भाई। जोड़ तोड़ का बंधन हमेशा ही लुभावना होता है। सच्चे मोती अपनी माला में कोई लोक लुभावन लटकन नहीं रखते क्योंकि उनकी सच्चाई उनकी चमक से पता चल जाती है। जबकि अस्त व्यस्त नकली मोती सफेद परत चढ़ाकर रंगीन काँच के टुकड़ों को भी साथ में जोड़ते हुए आकर्षक बनने की पुरजोर कोशिश करते हैं। कहीं बड़ा, कहीं छोटा, कोई भी मेल न होते हुए भी एक धागे से जुड़कर मला का स्वरूप पाना चाहते हैं।

सच्चाई भी यही है कि बिखरे हुए फूलों को कोई नहीं पूछता जबकि गुँथी हुई माला ईश के गले में स्थान पाती है। इससे वंदनवार भी बनाया जा सकता है, घर की शोभा बढ़ाने के साथ मंगलकामना का  भी प्रतीक बन जाते हैं। इस सबमें समय का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है, हर पल कीमती है, जब सही समय पर माला बनेगी तभी तो पूजन के काम में आएगी अन्यथा इंतजार का क्षण भारी होना तय है। एक – एक पैसे का हिसाब रखने वाले भले ही कंजूस की श्रेणी में क्यों न आते हों किन्तु समय पर उन्हें किसी के आगे झोली नहीं फैलानी पड़ती है।

सब धान बाइस पसेरी भले हो जाए किन्तु हर किस्म के  मोतियों को जुड़ना चाहिए, ये बात अलग है कि कमजोर धागा मोतियों के भार को सहन करने में अक्षम हुआ तो अबकी बार सारे मोती बिखर कर दूर – दूर हो जायेंगे। वैसे भी मजबूत धागा बनाने के लिए अच्छा सूत होना चाहिए। जब सब कुछ अच्छा होगा तो टिकाऊपन बढ़ेगा। लोग भी कमजोर को धकिया देते हैं। कमतर विचारों को कोई भाव नहीं देता। अच्छा बनें, सच्चा बनें।

अपने उसूलों को तय करते हुए अपनी वास्तविक पहचान के लिए कार्य करना चाहिए। जबरदस्ती में कमजोर के साथ।गठबंधन आपकी कीमत को और कम कर देगा। निर्णय सोच समझकर कर श्रेष्ठ गुरु के नेतृत्व में होना चाहिए। आखिरकार सुंदर और सच्चा मोती सभी को चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, chhayasaxena2508@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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