श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# बेबस… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 135 ☆

☆ # बेबस… #

कैसा जमाना आ गया है

माहौल गरमा गया है

धारा प्रवाह झूठ बोलते है लोग

जैसे झूठ इनके रूह में समा गया है

 

दावा करते हैं कि

वो सच के रखवाले हैं

उनके कपड़े उजले हैं

बाकी सबके काले हैं

 

जर, जमीन और आसमां पर

आज उन्हीं का राज है

सर झुकाती है प्रजा

सर पर उनके ताज है

 

कौन सच बोलेगा अब

मुंह के ताले खुलेंगे कब

जीर्ण-शीर्ण होकर

जब सब मिट जायेंगे तब

 

यहां किसी शिकायत का कोई

मतलब नहीं है

सब झूठ है

कोई गफलत नहीं है

बेवजह की है यह शिकायतें

ये पब्लिसिटी स्टंट है

हकीकत नहीं है

 

कल तक जो आंखों के तारे थे

सारे देश को प्यारे थे

आज अचानक बदनाम हो गये

जो आंखों के उजियारे थे

 

आज-

सच और झूठ के बीच

कशमकश है

दोनों के बीच

यह पुरानी रंजिश है

हैरान है सारा जमाना

सदियों से और आज भी

इन्साफ कितना बेबस है /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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