श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है बाल साहित्य  – “यात्रा वृतांत– बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं की धरोहर बाघ गुफाएं)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 141 ☆

 ☆ “यात्रा वृतांत– बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं की धरोहर बाघ गुफाएं” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

बाघ गुफाएं जैसा कि इनके नाम से विदित होता है कि ये बाघ के रहने की गुफाएं हैं। आपने ठीक पहचाना। इनका यह नाम इसी वजह से पड़ा है। ये गुफाएं अपनी प्राचीन समृद्ध परंपरा, अपनी संस्कृति और अपने समृद्ध इतिहास के पन्नों से 10 वीं शताब्दी में विलुप्त हो गई थी। या यूं कहें कि बौद्ध धर्म को भुला दिया जाने के कारण उनकी ऐतिहासिक धरोहर को भुला दिया गया था। इसी कारण इन गुफाओं में बाघ रहने लगे थे।

इतिहास की के आंधी पानी के थपेड़े खाकर यह जंगली इतिहास में तब्दील हो गई थी। जिसे मानव इतिहास की वर्तमान सभ्यता ने भुला दिया था। वह तो भला हो लेफ्टिनेंट डेंजरफील्ड का जिन्हों ने इन्हें खोज कर हमारे सम्मुख ला दिया। चूंकि ये गुफाएं बाघों के आवास का प्रमुख स्थान बन चुकी थी, इस कारण इन्हें बाघ गुफाएं कहा गया।

प्राचीन मालवा के महिष्मति अर्थात वर्तमान महेश्वर के महाराजा सुबंधु के एक ताम्रपत्र पर एक विशेष तथ्य का उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार महाराज सुबंधु ने बौद्ध विहार को विशेष अनुदान प्रदान किया था। जिसके अनसरण में गुफाओं का कल्याण कर कल्याण विहार की रचना की गई थी।

प्राचीन मालवा क्षेत्र तथा वर्तमान मध्यप्रदेश के धार जिले के कुक्षी तहसील में बाघ नामक नदी बहती है। यह नदी इंदौर से 60 किलोमीटर दूर बहती है। जिस के विंध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पा बाघ गांव के पास यह गुफाएं शैल पर उत्कीर्ण की गई है।

इस स्थान पर मेघनगर रेलवे स्टेशन से ट्रेन द्वारा तथा यहां से सड़क मार्ग से 42 किलोमीटर दूर, धार से 140 किलोमीटर दूर तथा कुक्षी से 18 किलोमीटर उत्तर में बस द्वारा या निजी साधन से यहां जाया जा सकता है। इंदौर और भोपाल से हवाई जहाज से यहां आ सकते हैं।

यह बाघ गुफाएं अजंता- एलोरा की तर्ज पर बनी हुई है। इन्हें एक ही शैल से उत्कीर्ण करके बनाया गया है। जिसे शैल उत्कीर्ण वास्तुकला कहते हैं। यह भवन निर्माण की उन्नत व पच्चीकारी की बेहतरीन शैली थी। जिसमें बिना नींव, छत और दीवार के एक ही शैल को तराश कर बरामदा, कक्ष, आराधना कक्ष, विहार, प्रार्थना स्थल आदि बनाए जाते हैं।

यह गुफाएं बौद्ध धर्म की अनुपम ऐतिहासिक धरोहर है। प्राचीन समय में बौद्ध भिक्षुओं के प्रचार-प्रसार, शिक्षा-दीक्षा, उपासना, अर्चना, निर्माण महा निर्माण, विहार, प्रति विहार, आराधना, ध्यान स्थल, ध्यान उपासना आदि के कक्ष, बरामदे, कमरे, प्रदक्षिणा स्थल को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

क्योंकि प्राचीन काल में समुद्र से व्यापार करने वाले व्यापारी इसी मार्ग से होकर जाते थे। इनके ठहरने, विश्राम करने तथा शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ उपासना करने के लिए आहार विहार के लिए यहां उत्तम व्यवस्था थी। इसलिए यह देश विदेश से जुड़ी हुई थी।

धार के कुक्षी में स्थित ये बाघ वफाएं भी इसी उद्देश्य बनाई गई थी। ये गुफाएँ प्राचीन मालवा प्रांत की शिक्षा-दीक्षा की बेहतरीन व्यवस्था को भी प्रदर्शित करती है। यहां 9 गुफाएं एक ही शैल पर अलग-अलग उत्कीर्ण की गई है। इन 9 गुफाओं में बौद्ध भिक्षुओं के आहार-विहार, उपदेश, प्रवचन, श्रवण के उद्देश्य से बनाई गई थी। वे यहां रहकर बौद्ध धर्म का अनुपालन कर उसका प्रचार-प्रसार कर सके।

इन 9 गुफाओं की अपनी-अपनी महत्ता और स्वरूप के हिसाब से इनमें लंबे-चौड़े बरामदे, कोठियां, शैलकृत स्तूप, चैत्य, बुद्ध प्रतिमा, बोधिसत्व, अलौकिक, मैत्रेय, नृत्यांगना, वाद्य कक्ष सहित अनेक पक्षों के दृश्यांकन अंकित है। इन 9 गुफाओं में से दो, तीन, चार, पांच एवं साथ में भित्ति चित्र बने हुए हैं। इन्हें सुरक्षा की दृष्टि से संरक्षित करके पृथक कर दिया गया है।

गुफा संख्या दो सर्व प्रसिद्ध भित्ति चित्र वाली गुफा है। इसमें पद्माणी बुद्ध का चित्र अंकित है। इस चित्र की मुखाकृति सौम्य है। इसका शरीर पुष्पा व आभूषण से सुसज्जित है। अर्धमूंदे हुए नेत्र उसकी सौम्यता को दुगुणित कर देते हैं।

यह बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं को प्रदर्शित करते हैं। यहां बुद्ध, धर्म चक्र, उपदेशक, बोधिसत्व, निर्माण, महानिर्वाण, प्रभामंडल, स्थिति प्रज्ञा की बेहतरीन मुद्रा में स्थित है।

इसी तरह गुफा संख्या दो को पांडव गुफा कहते हैं। गुफा संख्या 4 रंगमहल कहलाती है। तीसरे नंबर की गुफा हाथीखाना कहलाती है। गुफा संख्या 4 और 5 बेहतरीन अवस्था में है। इनमें से कुछ चित्र स्पष्ट है। कुछ प्राय नष्ट व धुँधले हो गए हैं।

चौथी गुफा जिसे रंगमहल कहते हैं। वह एक चैत्य स्थल है। वहां बौद्ध भिक्षुओं के स्मृति चिन्ह, अवशेष व प्रतीक संरक्षित रखे जाते थे। यहां पर बुद्ध की पद्मासन लगी प्रतिमा स्थापित है। यह अस्पष्ट होती जा रही है।

पांचवी गुफा में अनेक चित्र हैं। बुद्ध का सुंदर चित्र स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। शेष चित्र धुँधले हो गए हैं। इस गुफा में 5 कमरे हैं। इनमें चित्रांकन किया गया है। इसमें फल, फूल, पत्तियां, बेल, बूटे, कमल, पशु, पक्षी का यथा स्थान चित्रण हुआ है।

इन गुफाओं के चित्रों की कुछ अन्य विशेषताएं भी है। इनमें बौद्ध धर्म के अलावा भी जीवन के विविध आयामों का चित्रांकन हुआ है। इसमें नृत्य, गायन, अश्वरोहण, गजा रोहण, प्रेम, विरह, दुख, संताप आदि का अंकन बखूबी देखा जा सकता है।

प्रकृति का चित्रण इसके अंदर अद्भुत रूप से समाया हुआ है। फूल, लता, पत्तियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि का रोचक समन्वय चित्रों में देखा जा सकता है।

जीवन के विविध आयाम यथा- सुख-दुख, संताप, रोष, प्रेम के साथ-साथ लज्जा, वात्सल्य, प्रेम, ममता, विनय, स्नेह,शीलता, शौर्य, दीनता, लाचारी, भय, शांत, श्रंगार, हर्ष रूद्र,वीर आदि भाव को चित्रों में महसूस किया जा सकता है।

आप से आग्रह हैं कि आप गुफाओं को देखने और महसूस करने के लिए इनकी सैर अवश्य करें। ताकि आप हमारी अपनी विरासत का जान कर, इसकी पुरातन वास्तु भवन शैली की तन मन में सहेज सके। ताकि आप और हम भारत की प्राचीन धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक विरासत को जान समझ सके।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

03-02-2023 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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