डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसंवेदनशील एवं विचारणीय कहानी ”देशभक्त’ जी का संकट’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 196 ☆

☆ व्यंग्य ☆   ‘देशभक्त’ जी का संकट

भाई रतनलाल ‘देशभक्त’ बहुत परेशान हैं। न दिन को चैन है, न रात को नींद। रात करवटें बदलते गुज़रती है।

‘देशभक्त’ जी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। कुछ साल पहले अपने नाम के साथ ‘देशभक्त’ जोड़ लिया, सो अब अपना परिचय उसी नाम से देते हैं।

‘देशभक्त’ जी तीन पार्टियाँ छोड़कर अंतरात्मा की आवाज़ पर चौथी पार्टी में आये हैं। तब यह पार्टी पावर में थी। वे यह सोचकर पार्टी में आये थे कि कोई मलाईदार पद मिल जाएगा, लेकिन हाल ही में पार्टी के कुछ एमैले अंतरात्मा की आवाज़ पर पार्टी छोड़ कर चले गये और सरकार गिर गयी। ‘देशभक्त’ जी के लिए सर मुँड़ाते ही ओले पड़े। अब उनका चैन हराम है।

नई पार्टी ने पावर में आते ही भड़ाभड़ काम करना शुरू कर दिया। बिजली-पानी के शुल्क में छूट दे दी और तेज़ी से स्कूल, अस्पताल, पुल, सड़कें बनने लगे। उनके एमैले दिन भर काम के ठिये पर मुस्तैद दिखायी देने लगे।

लेकिन उनका काम देख कर ‘देशभक्त’ जी के पेट में पानी मचने लगा। ऐसे ही काम होता रहा तो उनकी पार्टी का पचास साल तक पावर में आने का नंबर  नहीं लगेगा। पब्लिक खुश रही तो अपना तो बंटाढार ही होना है। फिर चौथी बार दल बदलने के सिवा कोई चारा नहीं रहेगा।

चैन नहीं पड़ा तो अपनी पार्टी के पुराने घाघ गोमती भाई के पास पहुँचे। वे सोफे पर गणेश जी की मुद्रा में बैठे काजू- किशमिश टूँग रहे थे। देखकर देशभक्त जी का माथा और खराब हुआ। बोले, ‘आप यहाँ आराम से बैठे हैं और वहाँ अपना सारा काम खराब हो रहा है।’

गोमती भाई ने पूछा, ‘क्या हुआ? क्या परेशानी है?’

‘देशभक्त’ जी रुआँसे होकर बोले, ‘नयी सरकार इतनी तेजी से काम कर रही है। यही हाल रहा तो आगे हमें कौन पूछेगा? अपनी लुटिया तो डूबी समझो। पचास साल तक सर उठाने का मौका नहीं मिलेगा।’

गोमती भाई परमहंस की नाईं बोले, ‘जनता का भला हो रहा है तो होने दो। जब वे गलती करेंगे तो देखेंगे।’

‘देशभक्त’ जी भिन्ना कर बोले, ‘तो क्या हम उनके गलती करने तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें? हम कल से उनकी पार्टी के दफ्तर के सामने प्रदर्शन करेंगे, कहेंगे कि हर काम में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी हो रही है। आप अपने चेलों को कह दो कल सवेरे अपनी पार्टी के दफ्तर में झंडे-वंडे लेकर इकट्ठे हो जाएँ। बाकी हम देख लेंगे।’

दूसरे दिन सत्ताधारी पार्टी के दफ्तर के सामने हंगामा शुरू हो गया। पुलिस आ गयी। बैरिकेड लगे थे, उन्हें लाँघने की कोशिशें होने लगीं। पुलिस के साथ झूमा-झटकी होने लगी। ‘देशभक्त’ जी को बैरिकेड से थोड़ी सी खरोंच लग गयी। उन्होंने एक वालंटियर से पट्टी मँगवा कर उस मामूली सी खरोंच पर बँधवा ली और फिर कमीज़ उतारकर, अपने कंधे पर रखकर, चोट की नुमाइश करते घूमने लगे।

प्रदर्शन के बीच में ‘देशभक्त’ जी  लाउड-स्पीकर पर भाषण भी दे रहे थे, जिसका लुब्बेलुबाब था कि वर्तमान सरकार महाभ्रष्ट है, हर काम में तीस परसेंट कमीशन बँधा है। जो सड़कें और पुल बन रहे हैं वे एक साल से ज़्यादा नहीं टिकने वाले। स्कूलों-अस्पतालों में काम की क्वालिटी एकदम घटिया है और नई पीढ़ी और मरीज़ों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। ‘देशभक्त’ जी बार-बार मुट्ठी उठा कर कहते थे कि वे इस भ्रष्टाचार को नहीं चलने देंगे, भले ही उनको अपने प्राणों की बलि देनी पड़े।

हर बार उनका भाषण ‘बिस्मिल’ के शेर से ख़त्म होता था— ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है।’

पहले दिन प्रदर्शन से ‘देशभक्त’ जी अपनी फौज के साथ भारी संतुष्ट होकर लौटे। लगा जीवन को दिशा मिल गयी। अब आराम हराम है। रोज़ प्रदर्शन करना है और पूरा ज़ोर लगा कर सरकारी काम को रोकना है। सरकार काम करने में सफल हो गयी तो अपने भविष्य पर ग्रहण लगना निश्चित है।

अब रोज ‘देशभक्त’ जी चालीस पचास फुरसतिये लड़कों के साथ ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ का नारा लगाकर कहीं काम को रोकने निकल पड़ते हैं। फिर दिन भर हंगामा और पुलिस के साथ धक्कामुक्की चलती है। शाम को अपनी दिन भर की उपलब्धि पर गर्वित, सिर ऊँचा किये लौटते हैं। उन्हें भरोसा है कि उनकी कोशिशों से सरकारी काम रुके न रुके, नयी पार्टी में उनका रुतबा ज़रूर बढ़ जाएगा, जिससे आगे कुछ हासिल होने के रास्ते खुलेंगे।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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