श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# संबंध… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 132 ☆

☆ # संबंध… # ☆ 

जब जब भी मैंने

जोड़ना चाहा

वो जुड़ ना सके

जो मुझसे लड़ झगड़कर

दूर गये,

वो मुझसे मिलने

फिर मुड़ ना सके

 

फासला बढ़ता गया

हर पल

 हर मोड़ पर

मैंने कितना चाहा

उन्हें अपना बनाऊं

पर वे आ ना सके

अपना  हठ छोड़कर

 

समय ने तो खाई यां

बना डाली

हर कदम पर

जो भर ना सकी

मै उनपर सेतु बनाने

लड़ता रहा जीवनभर

कोई भी युति

काम कर ना सकी

 

वो कमियां अब

झिल बन गई है

समंदर में मिल गई है

मै टूटी हुई नाव से

कमजोर पतवार से

मंथर गति से चलकर

उन्हें सहेजना चाहता हूं

पर मेरी सारी शक्ति लील गई है

 

टूटने की पीड़ा

वो ही जानता है

जिसका सपना

देखते देखते टूटता है

अपनो से बिछड़ने का गम

वो ही जानता है

जिसका अपना उससे

सदा के लिए रूठता है

 

पानी के बुलबुले से

यह संबंध

कहां टिकते हैं

हम चाहे जितना

जतन करलें

यह दुनिया के बाजार में

स्वार्थ के हाथों में बिकते है /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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