(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक आलेख  –निद्रा योग

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 214 ☆  

? आलेख निद्रा योग?

अनिद्रा एक ऐसी परेशानी है जो  शरीर के अनेक रोगों का कारण होती है । जब कोई व्यक्ति अनिद्रा से पीड़ित हो तो उसे यह समझना चाहिए कि उसके शरीर में कोई समस्या है, जो बाद में किसी अन्य रूप में विकसित हो जाएगी। अनिद्रा के कारण पाचन तन्त्र प्रभावित हो जाता है ।  जो लोग ठीक से  सो नहीं पाते , उनमें से अधिकतर लोगों का यकृत खराब हो जाता है। समय के साथ अनिद्रा के चलते शरीर की सामान्य क्रियायें अव्यवस्थित हो जाती हैं। जब स्नायु तन्त्र में समस्या उत्पन्न होती है तो हम दैनिक कार्य भी कर पाने में असमर्थ हो जाते हो, जल्दी थक जाते हैं।

 धुनिक चिकित्सा में जब कोई अनिद्रा से पीड़ित होता है तो उसे प्रायः नींद की गोलियाँ दी जाती हैं। नींद की गोलियाँ आराम तो देती हैं, इसमें कोई संदेह नहीं, परन्तु वे रोग के कारण को दूर नहीं कर पाती हैं। कई बार शरीर के हॉर्मोनों का ठीक से कार्य न करना अनिद्रा का कारण होता है। उदाहरण के लिए यदि एड्रीनल ग्रन्थि ठीक से कार्य न करें, तो विषाद रोग हो जाता है। कई बार जब हम जीवन के किसी पहलू को लेकर चिन्तित रहते हैं तब  अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं,  अतः यह आवश्यक है कि लोग जानें कि स्वाभाविक रूप से अच्छी तरह कैसे सोया जाए। इस सम्बन्ध में योग की  भूमिका    महत्त्वपूर्ण है। नींद की समस्या के बढ़ते, विदेशों में स्लीप क्लीनिक तक खुल रहे हैं।

 योग के ऐसे अनेक अभ्यास हैं जिनसे अच्छी नींद आती है। मस्तिष्क में विद्युत की आवृत्तियाँ होती हैं जिन्हें मस्तिष्क तरंग कहते हैं। अलग-अलग समय पर ये तरंगें बदलती रहती हैं। ये तरंगें डेल्टा, थीटा, अल्फा और बीटा कहलाती हैं। मस्तिष्क की उच्च आवृत्ति को नीचे लाना आवश्यक है, विशेषकर रात्रि में जब मस्तिष्क में आवृत्तियाँ न्यूनतम हो जाती हैं, तो शरीर में क्रियाशीलता भी न्यूनतम हो जाती है और ऑक्सीजन की खपत भी न्यूनतम हो जाती है जब हम ठीक से सोते हैं तो  अगले दिन  अधिक शक्ति से सक्रिय हो पाते हैं।

 योग में निद्रा को बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है क्योंकि योग दर्शन के अनुसार निद्रा एक निष्क्रिय अवस्था नहीं है गहन निद्रा के समय व्यक्ति अचेतन तल पर बहुत सक्रिय हो जाता है और वह अपनी अन्तरात्मा के बहुत निकट आ जाता है। यही कारण है कि निद्रा  इतनी शक्ति इतनी ताजगी और इतना आनन्द देती है।  इसी कारण से योग ने कुछ अनुशासन बनाए हैं।

 योग में अनिद्रा से सम्बन्धित प्रथम अनुशासन यह है कि ज्यादा भरे हुए पेट के साथ नहीं सोना चाहिए।  यदि रात्रि में पेट में बिना पचा हुआ भोजन रहता है तो अति अम्लता से पेट में जलन होती है। 

पेट में एसिडिटी गैस के चलते रात्रि में बेतुके, विचित्र स्वप्न आते हैं जिससे निद्रा में व्यवधान उत्पन्न होता है अतः योग में यह सलाह दी गई है कि रात्रि के भोजन और सोने में कम-से-कम तीन घण्टों का फासला होना चाहिए। यह शाकाहारी लोगों के लिए है। मांसाहारी लोगों के लिए तीन घंटे से ज्यादा समय होना चाहिए ।

 दूसरा अनुशासन यह है की बाएँ करवट सोना चाहिए। कुछ लोग पीठ के बल सोना पसन्द करते हैं, अन्य लोग अपनी दायीं तरफ घूम कर सोना पसन्द करते हैं और अनेक लोग पेट के बल सोते हैं। ये तीनों स्थितियाँ वैज्ञानिक नहीं समझी जातीं। हाँ, जो लोग स्लिप डिस्क या सायटिका से पीड़ित हैं उन्हें पेट के बल सोना चाहिए, लेकिन एक आम व्यक्ति को बायीं तरफ सोना चाहिए, क्योंकि इससे हृदय पर बहुत कम दबाव पड़ता है।

 तीसरा यौगिक नियम है, बिस्तर पर जाने के पूर्व  दस से बीस मिनट के लिए शांत बैठ जाना चाहिए। यह केवल अनिद्रा से पीड़ित लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि हम सभी के लिए है, क्योंकि जब हम बिस्तर पर जाते हैं तो अवचेतन मन सक्रिय हो जाता है।

 निद्रा एक मानसिक अवस्था है और मन की एकाग्रता मन्त्र के रूप में होनी चाहिए। ‘ॐ ॐ ॐ का मानसिक उच्चारण करना चाहिए, क्योंकि ॐ एक सार्वभौमिक ब्रह्माण्डीय ध्वनि है । सोने के पहले मंत्र जप शान्ति और एकाग्रता उत्पन्न करती है। सत्ताईस दानों की एक छोटी माला रखना भी अच्छा है जिसमें कहीं कोई रुकावट न हो ज्यादातर मालाओं के बीच में एक विराम होता है, जिसे सुमेरु या शीर्ष कहते हैं, परन्तु रात में बिस्तर पर जाने के पहले  जिन मालाओं का उपयोग करते हैं उनमें यह व्यवधान नहीं होना चाहिए।

 चौथा महत्त्वपूर्ण अनुशासन है योगनिद्रा का अभ्यास योगनिद्रा एक बहुत शक्तिशाली विधि है।

  शरीर के अनेक अंग हैं, जैसे हाथों के अंगूठे और अंगुलियाँ, होंठ और नाक, नितम्ब और कमर, पैरों के अंगूठे और अंगुलियाँ। इस प्रकार तुम्हारे बाह्य शरीर में छिहत्तर केन्द्र हैं जिनके प्रतिरूप मस्तिष्क के एक विशेष भाग में स्थित होते हैं। जब हम एक-के-बाद-एक शरीर के इन अंगों पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो विशेष प्रकार की सम्वेदना उत्पन्न होती है। यह सम्वेदना एक भावना के रूप में मस्तिष्क के केन्द्रों में संचारित होती है। जैसे ही इस सम्वेदना का संचार मस्तिष्क में होता है, अविलम्ब विश्राम का अनुभव होता है।  यह योगनिद्रा का अभ्यास है।

 योगनिद्रा प्रारम्भ करने से पूर्व एक अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास है,रात को बिस्तर पर जाने से पूर्व एक प्रकाश पुंज  इस प्रकार रखें कि उसकी वह आँखों के स्तर से बहुत ऊँचा न हो और स्थिर रहे।  जितनी देर सम्भव हो उतनी देर उसे अपलक निहारते रहे, फिर  आँखें बन्द करने के बाद अपने मन को  माथे के मध्य पर एकाग्र करो और वहाँ प्रकाश के प्रतिरूप को देखने का प्रयास करो कुछ देर इसे करो और उसके बाद ओम मन्त्र का जप करो। फिर पीठ के बल लेट जाओ और थोड़ा योगनिद्रा का अभ्यास करो, तय है की गहरी नींद आ आएगी।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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