श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “मिल गए ज़िंदगी में जो तुम…”)

? ग़ज़ल # 76 – “मिल गए ज़िंदगी में जो तुम…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

हसीन हो जवाँ हो  कुछ तो इशारे होने चाहिए,

एक तरफ़ हम दूसरी तरफ़ नजारे होने चाहिए।

तराशा है संदल बदन चमकता हुआ चहरा तेरा,

तुम्हारा दिलवर एक नहीं बहुत सारे होने चाहिए।

असर मुहब्बत का महबूब को देखकर वाजिब है,

उधर घटा महकती हुई इधर दिलारे होने चाहिए। 

मिल गए ज़िंदगी में जो तुम हमको ए हमसफ़र,

मिल कर हम को अब प्यार में प्यारे होने चाहिए।

हम तुम मुश्किलों से मिलकर यूँही गुज़र जाएँगे,

चश्मतर आतिश अश्क़ों के नहीं धारे होने चाहिए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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