श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता  “मित्र को पत्र…”)

☆  तन्मय साहित्य  #182 ☆

☆ मित्र को पत्र… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

नमस्कार प्रिय मित्र

तुम्हारा पत्र मिला

पढ़कर जाने सब हाल-चाल

और कुशल क्षेम के समाचार

मैं भी यहाँ मजे में स्वस्थ

प्रसन्न चित्त हूँ सह परिवार।

 

मित्र! तुम्हारा पत्र सुखद आश्चर्य लिए

कुछ चिंताओं का मंगलमय हल

अपने सँग लेकर आया है

संबंधों के घटाटोप

रिश्तों के रूखे पन

भौतिक आकर्षण में

ये बारिश की पहली फुहार

माटी की सोंधी गंध

प्रेम का शीतल सा झोंका लाया है।

 

अब गुम हुई चिट्ठियाँ

मिलती कहाँ गंध

स्नेहिल हाथों की

खाली है संदूक आज वह

अत्र कुशल तत्रास्तु भाव के

प्रेमपूर्ण रिश्ते-नातों की,

शब्द शब्द में हो जाती

साकार सूरतें तब अपनों की

अब बातें चिट्ठी-पत्री की

हुई हवाई है सपनों की।

 

यूँ तो मोबाइल पर अक्सर  

अपनी भी होती है बातें

पर उन बातों में

तकनीकी मिश्रण के चलते

अपनेपन वाली

मीठी प्रेम चाशनी का

हम स्वाद कहाँ ले पाते।

 

अधुनातन कंप्यूटर और मोबाइल

द्रुतगामी यंत्रों की

भीड़ भाड़ में

भटक गए हैं

कुछ पर्वों त्योहारों पर हम

रटे-रटाए बने बनाए शब्द शायरी

संदेशों के बटन दबाकर

बस इतने पर

अटक गए हैं।

 

ऐसे में यह पत्र तुम्हारा पाकर

मैं अपने में हर्ष विभोर हुआ

संबंधों की पुष्प लता के

रस सिंचन को

लिए लेखनी हाथों में

अंतर मन का आकाश छुआ।

 

लिख लिख मिटा रहा हूँ

अब हर बार शब्द बंजारों को

व्यक्त नहीं कर पाता हूँ

अपने मन के उद्गारों को

शब्द व्यर्थ हो गए

भाव अंतर में जागे मित्र

समझ लेना तुम ही

जो लिखना है अब इसके आगे

समय-समय पर कुशल क्षेम के

पत्र सदा तुम लिखते रहना

घर में सभी बड़े छोटों को

यथा योग्य अभिवादन कहना।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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