श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक चतुर नार”।)  

? अभी अभी ⇒ एक चतुर नार? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

पुरुष के कई प्रकार हो सकते हैं लेकिन नारी के मेरी दृष्टि में केवल दो प्रकार ही होते हैं। एक सीधी सादी महिला और एक समझदार महिला। जो समझदार होता है, उसे चतुर कहते हैं। चतुर होना और सीधा होना, दोनों मानवीय गुण हैं।

सन् 1968 में एक हास्य प्रधान फिल्म आई थी, पड़ोसन जिसकी नायिका एक चतुर नार थी और नायक एक भोला भाला इंसान।

वो लड़की बिंदु थी, और वो लड़का भोला था और एक संगीत मास्टर बिंदु को संगीत सिखाने आते थे, लेकिन सिखाते कुछ और ही थे। ।

बिंदु नायिका का नाम था। बिंदु की मां को बिंदु की शादी की बड़ी चिंता रहती थी, जब कि बिंदु के पिताजी का कहना था, जब जब जो जो होना होता है, तब तब सो सो होता है, बिंदु की मां।

इसी फिल्म का एक लोकप्रिय गीत था, एक चतुर नार बड़ी होशियार ! क्या नारी ही चतुर होती है, पुरुष नहीं होता ? शास्त्रों में चतुर शब्द का अर्थ बुद्धिमान और प्रज्ञा वान भी बताया गया है। गीतकार प्रदीप फिर भी कह गए हैं, कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे ना रे मेरे भाई। ।

आप मानें या ना मानें, पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक चतुर और समझदार होती हैं। वे घर की मालकिन भी हैं और अन्नपूर्णा भी। उनसे ही घर घर कहलाया। बहुत कम घर ऐसे होंगे जहां चूड़ियों की खनक ना हो, फिर भी रौनक हो। घर के बर्तनों की आवाज़ में जब किसी किसी समझदार महिला की आवाज़ शामिल होती है, तब ही मेहमान समझ जाता है, बस अब चाय और नाश्ते की ट्रे आई ही आई।

अगर औरत चतुर ना हो, तो पुरुष घर का तो कबाड़ा ही कर डाले। पाई पाई कैसे बचाई जाती है, काम वाली बाई से कैसे काम लिया जाता है, सब्जी वाले से कितना मोल भाव किया जाता है, यह सब पुरुषों का विभाग है ही नहीं। सुनो, पेपर वाला आया है, उसका हिसाब कर दो। और पेपर वाला भी समझ जाता है, घर के कैलेंडर में दूध वाले के साथ उसका भी हिसाब होना है। मजाल है एक भी नागा छूट जाए। ।

हमारे बोलचाल की भाषा में ऐसे गुणी लोगों को चतरा और चतरी कहते हैं। जिस घर में पुरुष सीधा है वहां महिला का तेज तर्रार होना बहुत ज़रूरी है। क्या बात है, आज बाई साब नहीं हैं, मायके गई हैं, अच्छा इसीलिए शांति है। और पुरुष घर में हो, ना हो, क्या फर्क पड़ता है। होगा कहीं किताबों, अथवा टीवी न्यूज के बीच।

जो पुरुष चतरे होते हैं उन्हें सयाना नहीं श्याणा कहते हैं। अधिक शंकालु एवं कंजूस किस्म के लोग होते हैं ये। फिर भी समय हमें सावधान तो करता ही रहता है। आज जब कोरोना का प्रकोप जारी है, सावधानी और चतुराई में ही समझदारी है। व्यवहार में और अधिक संयत और सतर्क रहना जरूरी है। ।

आज मानवीय रिश्ते दांव पर लगे हुए हैं। भलमनसाहत और सीधा पन अभिशाप बन चुका है। केवल अपना हित साधना ही समय की मांग है। किसी को गले लगाना, पास बिठाना, सुख दुख की बात करना, मानो एक सपना था। अब टूट गया है। टूट गई है माला, मोती बिखर गए। दो दिन रहकर साथ, जाने किधर गए।

इतनी भयानक त्रासदी के बीच भी लोगों का राग द्वेष कम नहीं हो रहा। स्वार्थ और लालच बढ़ता ही जा रहा है। क्या इंसान वाकई ज़्यादा चतुर हो गया है। इसे केवल समय की दोहरी मार ही कहा जा सकता है। ।

 हम चतरे भले ही नहीं, लेकिन आज मजबूर हैं, असहाय हैं, दिल टूटा है फिर भी, मत कहिए किसी को ;

पास बैठो, तबियत बहल जाएगी

मौत भी आ गई हो, तो टल जाएगी।

कुछ इस तरह की चतुराई ईश्वर ना करे, शायद हमें भी दिखानी पड़े ;

दूर रहकर ही करो बात

करीब ना आओ।

हो सके तो अब फोन पर ही बतियाओ। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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