सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “अकेला”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार #1

 

☆ अकेला ☆

 

उस गुज़रे ज़माने में,

गर्मियों की दोपहरी में,

राहों पर चलते हुए दो मुसाफ़िर

अक्सर एक ही बरगद की ठंडी छाँव में

कुछ पल को रुक जाते थे,

कुछ बातें कर लिया करते थे,

साथ लाई रोटियाँ और अचार

मिल-बांटकर खा लिया करते थे

और फिर तनिक सुस्ताकर,

निकल पड़ते थे

अपने-अपने रास्तों पर

अपनी-अपनी मंजिलों की खोज में!

 

उन पलों को

जब वो साथ बैठे थे,

बड़ा ही खूबसूरत मानते थे

और इन्हीं मीठी यादों के सहारे

ज़िंदगी काट लिया करते थे!

 

शायद

इस एयर-कंडीशनर के युग में

दरख्तों के नीचे बैठने का सुकून

तो मिल ही नहीं सकता,

हर कोई

अपने-अपने हिस्से की ठंडी

अपने-अपने एयर-कंडीशनर से लेता है,

न कोई दर्द बांटता है, न ख़ुशी,

बस यही एक विचार

मन में मकाँ बना लेता है

कि कैसे मंजिलों को पाया जाए

और इसी डर के मारे

वो रह जाता है

अकेला भी और बेचारा भी!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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Mukta Mukta

बहुत उम्दा।सुंदर कटाक्ष।

Kishan Negi

दिल को छूने वाली पंक्तियाँ। बहुत ख़ूब ।