श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे … कर्म ”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 164 ☆

☆ “संतोष के दोहे … कर्म ” ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कर्मों पर होता सदा,कर्ता का अधिकार

कर्म कभी छिपते नहीं,करते वो झंकार

कर्मों से किस्मत बने,कर्म जीवनाधार

कभी न पीछा छोड़ते,फल के वो हकदार

जैसी करनी कर चले,भरनी वैसी होय

कर्मों की किताब कभी,बांच सके ना कोय

सबको मिलता यहीं पर,पाप पुण्य परिणाम

जो जिसने जैसे किये,बुरे भले सब काम

तय करते हैं कर्म को,स्व आचार- विचार

कर्मों से सुख-दुख मिलें,तय होते व्यबहार

पाप- पुण्य की नियति से,करें सभी हम कर्म

सदाचरण करते चलें,यही हमारा धर्म

अंत काम आता नहीं,करो कमाई लाख

साथ चले नेकी सदा,तन हो जाता राख

गया वक्त आता नहीं,समझें यह श्रीमान

करें समय पर काम हम,रखें समय का मान

कर्म करें ऐसे सदा,जिसमें हो “संतोष”

कोई कभी न दे सके,जिसकी खातिर दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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