श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “जीवन परिक्रमा पथ…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 145 ☆

☆ जीवन परिक्रमा पथ

बला या बलाएँ जो टाले नहीं टल रहीं हैं। बिना दिमाग के जब कोई कार्य किए जाते हैं तो उनके परिणाम न केवल करने वाले को वरन उनसे जुड़े लोगों को भी परेशान कर देते हैं। हैरानी की बात तो तब होती है जब बातचीत  के मुद्दे ढूंढने के चक्कर में हम गलतियों पर गलती करते जाते हैं। कहते हैं समय का पहिया गतिमान रहता है, जो इसके साथ कदमताल मिलाते हुए स्वयं को विकसित करता जाता है वो अपना दबदबा बना लेता है। जो भी कार्य करें उसमें आपकी पहचान सबसे अलग तभी होगी जब उसमें शतप्रतिशत परिश्रम लगाया जाएगा। जैसी करनी वैसी भरनी के अनेकों उदाहरण जगत में मिलते हैं किंतु हम सब इन बातों से बेखबर अपने पूर्वाग्रह को ही प्राथमिकता देते हैं। सही गलत को एक ही तराजू में रखने की गलती करने वालों को भगवान कभी माफ नहीं करते। सच के साथ स्वयं की शक्ति अपने आप जुड़ने लगती है जिससे राह और राही उसके साथ खड़े नजर आते हैं।

जीवन पथ पर चलते हुए हमें केंद्र बिंदु की ओर निहारने के साथ ही ये भी ध्यान रखना होगा कि जिस बिन्दु से हमने चलना प्रारंभ किया है, एक निर्धारित समय बाद पुनः यहीं आना होगा। बस हम कुछ कर सकते हैं तो वो यही होगा कि स्वयं को पहले की तुलना में श्रेष्ठ बना लें। हर दिन जब नया सीखते चलेंगे तो आने वाले पलों को सुखद होने से कोई नहीं रोक पायेगा।

दिमागी उथल- पुथल से कुछ नहीं होगा, कार्यों को शुरू कीजिए और तब तक करते रहें जब तक मंजिल आपके कदमों में न आ जाए। लक्ष्य को साधना कोई साधारण कार्य नहीं होता है। जो तय करें उसे पूर्णता तक पहुँचाना ही सच्चे साधक का कार्य होता है।

पटाखे की लड़ी को फूटते हुए देखकर एक बात समझ में आती है कि एक साथ जुड़े हुए लोग एक जैसे परिणाम भोगते है। इसीलिए तो कहा गया है कि संगत सोच समझ के करें, आप जिनके संपर्क में रहेंगे वैसे बनते  चले जायेंगे।

आइए सकारात्मक विचारों के पोषक बनें, सर्वे भवन्तु सुखिनः की ओर अग्रसर होकर अच्छे लोगों का सानिध्य प्राप्त करें।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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