श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता  – “मन में मायका…”।)

☆ कविता  # 183 ☆ “मन में मायका…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

माँ हर बार 

ऐसा ही करती 

ऐसा ही सोचती 

मन की बात करती

मायका मन में होता 

पिता को याद करती

उनके अंगोछे की गांठ

में होरा का स्वाद होता

गेहूं की सुगंध होती

यादों में हरसिंगार के 

फूल खुशबू बिखेरते

मायका याद आता

तो बहुत याद आता

 याद आ जाती वो

किवाड़ की सांकल 

वो अमरूद का पेड़ 

वो अमऊआ की डाली 

वो प्यारी प्यारी सहेली 

वो अम्मा की लम्बी टेर 

 बाबू के किताबों के ढ़ेर

पगडंडी की वो पनिहारिन 

चुहुलबाज़ी वाली वो नाईन 

मुंडेर पर बैठी हुई  गौरैया

हर बार माँ याद करती 

पिता के वो अंगोछे को

जिसमें होरा और इमली

की खुशबू सलामत रहती

वो बार बार अपनी प्यारी 

मां को दिल से याद करती

और कहती मां तुम कहां हो

 फिर बड़बड़ाती हुई सो जाती 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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