श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “चेहरा मोहरा पहनावा सजधज महज़ छल…”)

? ग़ज़ल # 57 – “चेहरा मोहरा पहनावा सजधज महज़ छल…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ख़ैरात  बँट  रही  है  सियासत के नाम पर।

लूट मची अब  केवल रियायत के नाम पर।

चेहरा मोहरा  पहनावा सजधज महज़ छल,

चलता खेल हवस का मोहब्बत के नाम पर।

खुलकर बोल न देखे जो यहाँ कुछ हुआ ग़लत,

चुप मत रह  तू  अब यहाँ शराफ़त के नाम पर।

अपनो  की  बेरुख़ी  तन्हा  बद  है  सरेआम,

यह बचता अब मेरे पास दौलत के नाम पर।

पाबंदियां     पामालियां    मक्कारियां    फ़रेब,

क्या कर रहे हैं आतिश अब सत्ता के नाम पर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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