श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “गरीबी पर दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 145 ☆

☆ गरीबी पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

होती धन की हीनता, बनते तभी गरीब

समझ सकें क्या दीनता, जब सुख होत करीब

 

धन-दौलत से आँकते, यहाँ गरीबी लोग

दोष सभी दें ईश को, कहें भाग्य का योग

 

कोसें अक्सर समय को, करें न कोई कर्म

भाग्य भरोसे न रहें, निभा कर्म का धर्म

 

अटल इरादे गर रखो, बनो नहीं मजबूर

कर्मों की कर साधना, करो गरीबी दूर

 

धन-दौलत से खुशी का, नहीं कोई संबंध

निर्धन रहता चैन से, उस पर क्या प्रतिबंध

 

जाने कितनी योजना, चला रहीं सरकार

पर गरीबी मिटी नहीं, सब बेबस लाचार

 

महनत कर कर थक गए, संवरा नहीं नसीब

जाने क्या है भाग्य में, सोचे यही गरीब

 

रोज चुनौती मिल रहीं, हो कैसे निर्वाह

मंहगाई के दौर में, निर्धन रहा कराह

 

दीनबन्धु सुध लीजिए, है गरीब लाचार

उनको भी संतोष हो, ऐसा कर उपचार

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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