श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 147 ☆

☆ ‌आलेख – नारी तू नारायणी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

नारी युगों-युगों से मानव समाज द्वारा विभिन्न रूपों में पूजित रही है। उसने अनेक रूपों में बार-बार मानव समाज की संकटों से रक्षा की है। कभी सहधर्मिणी बन  जीवन साथी के साथ कंधा मिलाकर कर सीता और द्रौपदी के रूप में वन-वन भटकी है, तो कभी दुर्गा, काली, लक्ष्मी, गौरी, सरस्वती के रूप में पूजनीय रही है। वह अपनी दया, करूणा, सृजनशीलता, सहनशीलता आदि गुणों के चलते सदैव एक इतिहास रचती रही है। उसके इन्हीं गुणों के

चलते  देवताओं तक ने नारी का सम्मान किया।  नारी के बारे में संस्कृत का यह सूत्र वाक्य बहुत कुछ बतला देता है।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।

इतना ही नहीं अध्ययन की और गहराई में जाए तो पाते हैं कि हर युग में नारी का स्थान सर्वोपरि रहा है, कभी शिव ने हृदय से नारी को अंगीकार किया और अर्द्धनारीश्वर कहलाए। तो वहीं पर समुद्र मंथन के बाद विष्णु जी ने नारी को अंगीकार कर उसे विष्णुप्रिया का पद दिलाया। तो वहीं पर राम के साथ सीता के रूप में, वन-वन कर्म पथ पर चली, तो राधा के रूप में कृष्ण के हृदय में विराजित नारी अपनी त्याग तथा श्रद्धा समर्पण के बल पर कृष्ण की हृदयेश्वरी बन जाती है। तो कभी वर्तमान समय में नारी दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप दीवाली दशहरे पर शक्ति स्वरूपा बन आवाहित एवं पूजित होती दिखती है। लेकिन नारी समाज का दूसरा पहलू भी है, जो अपने अध्ययन काल में हमने देखा, नारी पुरुष प्रधान समाज द्वारा उपेक्षित तथा पीड़ित भी रही है। उसे हृदयंगम करने वाला मानव समाज कभी उसे अबला के संबोधन से हतोत्साहित करता है तो  कभी कर्तव्य बलिवेदी पर चढ़ा जुए में हार जाता है तो कभी अग्नि परीक्षा लेकर उसके चरित्र पर संदेह प्रकट किया जाता रहा है। और निरपराध गर्भिणी नारी को बन बन भटकने पर मजबूर किया जाता रहा है। कभी नारी को प्रियतमा मान साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाने वाला जो खुद प्यार की पूजा में ताज महल बनवाने तथा स्मृति शेष बनवाने वाला मानव किसी नारी को प्रेम करते देख ईर्ष्या से जल उठता है। ज्यों ही नारी अपने प्रेम का इजहार करती है पुरुष प्रधान समाज उसे  अपने मान सम्मान से जोड़ते हुए नारी का दुश्मन बन जाता है। और सारे रिश्ते भुला कर  उसकी हत्या करवा देता है। जब कि नारी हमेशा से ही धन, वैभव, सुख, शांति, समृद्धि, विद्या की देवी सर्व मंगलकारिणी के रूप में समाज के सर्वोच्च पद पर स्थापित रही है। लेकिन आज के व्यावसायिक युग में नारी के रूप तथा सौंदर्य को भुनाया व बेचा जा रहा है, उसे उपभोग की सामग्री मान लिया गया है। मानव समाज उसे अपनी लिप्सा पूर्ति का साधन समझ बैठा है।

आज देवताओं द्वारा पूजित नारी सबसे ज्यादा पीड़ित दुखी एवम् उपेक्षित है। पुरूष तो पुरुष आज तो नारी ही नारी समाज की दुश्मन बनी भ्रूण हत्या पर उतारू हैं। और पुरुष समाज के कंधे से कंधा मिलाकर जघन्य कृत्य में सहभागिता कर रही है।

आज के नर नारी समाज को शायद यह पता नहीं है कि जब कोख ही नहीं रहेगी तो वंश वृद्धि कैसे होगी। आखिर कब हमारा समाज नारी रूपी नारायणी का सम्मान उसे वापस दिलाएगा। याद रखिए जहां नारी शक्ति सम्मानित होती है वहां सुख शांति समृद्धि के साथ-साथ सदैव मंगल ही मंगल होता है। जहां नारी की उपेक्षा होती है वहां हिंसा द्वेष  कलह का तांडव होता है। जीवन नारकीय बन जाता है। इस लिए आज जरूरत है नारी समाज को सम्मान देते हुए पारिवारिक जीवन सुखमय बनाने की।

और अंत में

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

दिनांक 23–10–22  समय-12-10-22

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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